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Thursday, March 28, 2019

अश्कों की बारिश

अश्रु नीर बन बहने लगे
विरह वेदना सही न जाए
इतने बेपरवाह तुम तो न थे
जो पल भर मेरी याद न आए

चटक-चटककर खिली थी कलियाँ
मौसम मस्त बहारों का था
मैं पतझड़-सा जीवन लेकर 
ताक रही थी सूनी गलियां

फूल पलाश के झड़ गए सारे
बीते गए दिन मधुमास के
गर्म हवाएं तन को जलाती
बैठी अकेली मैं अश्रु बहाती

शरद भी बीता बसंत भी बीता
विरह की अग्नि बरसने लगी
नयनों से अश्कों की बारिश
मैं पल-पल तेरी बाट निहारूँ

लौटकर आना देर न करना
मन का मेरे विश्वास न टूटे
नयना मेरे तेरी याद में भींगे
कहीं सब्र का मेरे बांध न टूटे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, March 24, 2019

जीवन का सत्य

समय अपनी रफ्तार से भागता है 
पता ही नहीं चलता
जीवन की यह गाड़ी कब
ज़िंदगी का
सुहाना सफर छोड़कर
एक अनजाने अनचाहे
सफ़र पर चल पड़ती है
जहाँ एक-एक करके
दूर होते जाते अपने
हाथों से हाथ छूटने लगता
यह कैसा मोड़ ले जाती ज़िंदगी
जहाँ हार सिर्फ हार दिखाई देती
उम्मीद की किरण धूमिल हो जाती
यही शाश्वत सत्य है ज़िंदगी का
जहाँ आकर 
हर इंसान हार जाता है
मृत्यु पर किसी का
बस नहीं चलता
चोट पर चोट लगती जाती है
फिर भी खड़े होकर कर्म करते जाना
यही मानव जीवन की नियति है
कहते हैं सब हिम्मत से काम लो
रुको मत आगे बढ़ो 
यादों को साथ लेकर
दुनियाँ तो आनी-जानी है
जीवन मृत्यु की कहानी है
मुश्किल होता है संभलना
इस खालीपन को जीना
बहार में भी पतझड़-सी ज़िंदगी
वृक्ष से शाखाओं का गिरना
सारी रौनकें लेकर 
निकल जाता वक़्त
हम कोसते रह बस उस जाते लम्हे को
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Monday, March 18, 2019

आई रे होली आई (गीत)

आई रे आई होली
सब मिलके खेलो होली
होली के रंग खिले हैं
भंग पीकर झूम रहे हैं
नाचे सब मिलजुल सारे
मस्ती में झूम रहे हैं
रंगों में होकर सराबोर सब
नाचें मिलजुलकर सारे
खुशियों की धूम मची है
आई रे आई होली
अबीर-गुलाल है उड़ता
गोरी के गालों को रंगता
मारे भर-भर पिचकारी
भींगे चुनरिया सारी
रंगों में होकर सराबोर सब
नाचें मिलजुलकर सारे
खुशियों की धूम मची है
आई रे होली आई,आई रे होली
रंग में सब रंगे हुए हैं
मस्ती में झूम रहे हैं
ठंडाई का दौर है चलता
गुझियों की मिठास घुली है
रंगों में होकर सराबोर सब
नाचें मिलजुलकर सारे
खुशियों की धूम मची है
आई रे होली आई,आई रे होली
आओ खुशियों के रंग लगा लें
मन से बैर-भाव भुला दें
ताल से ताल मिलाकर
रंगों में होकर सराबोर सब
नाचें मिलजुलकर सारे
खुशियों की धूम मची है
आई रे होली आई,आई रे होली
***अनुराधा चौहान***

Sunday, March 17, 2019

फागुन के रंग

फागुन ले आया खुशियों के रंग
झूमे प्रकृति हवाओं के संग
फूल मुस्कुराते भँवरों के संग
उमंग भरी चली बसंती हवाएं
रक्तिम फूले उठे हैं पलाश 
फाग के गीतों की मची है धूम 
अबीर,गुलाल में रंगें सबके मन
नाच रहे हैं सारे रंगों में रंगकर
ढपली और मृदंग की थाप पर
थिरकता झूमता मनभाता फागुन
रंग-बिरंगे रंगों में रंग गया जीवन
प्रकृति का खिले हर एक कोना
फूलों का बिछा रंगीन बिछौना
रंगों की लेकर बहार है आया
लो रंग-रंगीला फागुन आया
रंग होली के साथ है लाया
गुलाल के रंग में रंगे हैं सारे
रंग-बिरंगे होते आँगन,गलियारे
प्रीत के अहसास से भीगे तन 
हर्षित है आज हर किसी का मन
रंगों में रंगने को निकल पड़ी
ले पिचकारी सखियों की टोली
लो आया रंग-रंगीला फागुन 
सब मिलकर खेलो लो आई होली
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, March 15, 2019

भावों से प्रीत

सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
नित पनपते मेरे मन में
नव अंकुर अहसासों के
आशाओं की बेल पनपती
मन के कोमल भावों से
कोरे कागज पर लिखकर
करती भावों को साकार
रचनाओं के रूप से निखरे
शब्दों का यह सुंदर संसार
लय न जानूं ताल न जानूं
भावनाओं में बहना जानूं
कविता लिखूंँ या गीत लिखूंँ
भावों से अपनी प्रीत लिखूंँ
नित पनपें सबके मन में
नव गीत सुंदर भावों के
मोती बनकर चमकें सदा
शब्द सुंदर अहसासों के
चाँद की चाँदनी बनकर
मधुमास का प्यार बनकर
सावन की रिमझिम फुहारों-सी
लिखूँ मैं विरह की वेदना
सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, March 14, 2019

तेरे सुर मेरे गीत

रंगा हुआ तेरी प्रीत के रंग
तू मेरा फागुन तुझसे ही बसंत
महकाया तूने जीवन मेरा
बस में नहीं दिल यह मेरा

तेरे काले-कजरारे नयना
मुझ पर कर गए जादू 
खोया तेरे ही ख्यालों में
सुध-बुध अपनी मैं खोकर

तेरी पायल की छम-छम
बजती हो कहीं पर सरगम
तेरी चूड़ियों की खनक से
संगीत बना मेरा यह जीवन

मोहिनी सूरत भोली-भाली
बातें तेरी बड़ी जग से निराली
मुझ पर चलाए अपना जादू
अब नहीं रहा मन पर काबू

तन्हाइयों में घिरा था मैं उदास
अकेला था मैं कोई नहीं पास
खुशियों को गया था मैं भूल
तन्हा था तन्हा जीने को मजबूर

पतझड़-सा था मेरा जीवन
तुम आई ज़िंदगी में बहार बनकर
अब जीवन का हर दिन बसंत है
छाए खुशियों के सतरंगी रंग है

खिल गई सपनों की क्यारी
दुनिया लगे बड़ी ही प्यारी
सदियों का यह मिलन लगे
जब से तेरे सुर मेरे गीत बने
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, March 13, 2019

वजह क्या थी

एक 
कली
जो अभी
खिली भी न थी
मसल दी हैवानों ने 
वजह क्या थी छोटे वस्त्र पहने थे 
नहीं
इंसानियत
मर चुकी थी
वहशी दरिंदों की 
वासना में लिप्त थे
तभी तो नहीं दिखी थी
उन्हे नन्ही कली नाजों से पली
जब
होता 
स्त्री का 
चीरहरण
तार-तार होती 
इज्जत लोगों की दृष्टि में
वही इसकी जिम्मेदार होती
बातें 
बनती 
फिर उसके 
पहनावे पर
उसकी आजादी पर
आरोप छोटे वस्त्रों का
उन मासूम नन्ही परियों
का दोष भी क्या उनके कपड़े 
यही सोच उन्हें जीने नहीं देती 
वो
उनके 
तानों से 
आहत होती
उल्हानों से पीड़ित 
आत्मा चीखने लगती
जब कपड़ों पर प्रश्नचिंह लगते
कान
बंद कर
उनकी चीखें
अनसुनी करते
द्रोपदी के दर्द को
सब अनदेखा करते
भीष्म को तरह है मौन
सच्चाई जानते दुर्योधनों की
आँख बंद कर धृतराष्ट्र बने रहते है
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित ✍
चित्र गूगल से साभार

विरह वेदना

छूकर मुझको जब चलती हवाएं
तन-मन में मेरे आग-सी लगाएं
बीत रहा है बसंत तू नहीं है पास
बैरी फागुन मुझे तेरी याद दिलाए

बुझा-सा चाँद चाँदनी भी लगे उदास
महक तेरे अहसास की हरपल है पास
यादों में तेरी मेरी भीगीं हैं अँखियाँ 
बीता रहा फागुन सूनी हैं रतियाँ

यह रात के अंधेरे पत्तों की सरसराहट
लगता है तुम हो या तेरे आने की आहट
बहार बीतने लगी मधुमास भी जा रहा
फागुन का रंग मेरे मन को तड़पा रहा

बैचेन हूँ मैं बहुत तन्हाई सही न जाए
विरह की अग्नि मेरा तन-मन जलाए
बैरन निंदिया आँखों से बहुत दूर है
ज़िंदगी मेरी तन्हाईयों से भरपूर है

पलाश के फूलों की आग भी बुझने लगी
सर्द हवाएं गर्म हो विरह में जलने लगी
मेरे मन के आँगन से पतझड़ गया नहीं
बिन तेरे बसंत में दिखता कोई रंग नहीं

तुम गए साथ में रंग सारे ले गए
बेबस लाचार-से हम तड़प के रह गए
अब तेरी यादें और तन्हाइयों का साथ है
कैसा अब फागुन कैसी बहार है
***अनुराधा चौहान***

Monday, March 11, 2019

बिखरती कलियाँ

कैसा हवाओं में
जहर-सा  घुला है
मौसम भी अब
सहमा हुआ है
सूना है गुलशन
मासूम किलकारियों से
गुम हो रही हँसी
मासूम परियों की
अब दिखे उज़ड़ी-सी
सारी गलियाँ
गुलशन में नहीं
खिलती अब कलियाँ
असमय ही टूट कर
बिखर जाती हैं
कलियाँ जो अभी
फूल भी न बनी थी
कुचल देते उनके
मासूम सपनों को
अपनी घृणित
मानसिकता के चलते
धूल में मिल गए
जो देखे थे 
सुंदर सपने 
शोषित हुआ बचपन
जिनसे उनमें
कुछ अपने थे
टूटा दिल
असमय तन्हाई
जीवन में आई
मिट गई कोमलता
बचपन की
मासूमियत को
कुचल गई
हाय बेटियों की
यह कैसी नियति
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, March 9, 2019

सबसे बड़ी पूंजी


रिश्तों में प्यार पले
माँ के आँचल की छांव तले
पिता की मर्यादा को
जहाँ हरदम मान मिले

संस्कार से बड़ी  
कोई दौलत नहीं 
यह सबसे बड़ी 
पूंजी जीवन की

जहाँ बड़ो का सम्मान होता
बच्चे भी वहाँ संस्कारी होते
भाई-भाई में प्रेम पनपता
बहनों का प्यार अपार मिले

प्रेम से बड़ी 
कोई दौलत नहीं 
यह सबसे बड़ी 
पूंजी जीवन की

सच्चा दोस्त हो साथ अगर
मुश्किल न हो कठिन डगर
नहीं हो किसी से बैर मन में
जीवनसाथी से जीवन में प्यार मिले 

सच्चाई से बड़ी 
कोई दौलत नहीं 
यह सबसे बड़ी 
पूंजी जीवन की

***अनुराधा चौहान***

दौलत के फेर में

दुनियाँ दीवानी दौलत की
यह दौलत है जो दिल तोड़े
दौलत ही अब रिश्ते जोड़े
दौलत की मची है मारामारी
भ्रष्टाचार बना रहा है बीमारी
दौलत, शौहरत है सबकी चाहत
इसके आगे मर रही इंसानियत
अब उसका पलड़ा भारी है
जिस पर लक्ष्मी की मेहरबानी है
हर जगह चल रहे घोटाले
कुछ भी कैसे भी 
बस पैसा हैं कमाने
इंसान भूल रहे अपना प्यार
खड़ी हो रही दौलत की दीवार
दौलत का भूत सिर पर सवार
माँ-बाप का खर्च नहीं बर्दाश्त
अब दौलत से ही रिश्ते बनते
दौलत से ही रिश्ते बिगड़ते
पैसे कमाने की होड़ मची है
हमसे बेहतर कोई नहीं है
फ़ुरसत के पल पास नहीं
बच्चों का बचपन भी याद नहीं
पर पैसे का पल-पल का हिसाब सही
दौलत की भूख कभी मिटाए न मिटे
ज़िंदगी बीतती जाती दौलत के फेर में
***अनुराधा चौहान***

पहचान

चूड़ी बिंदिया कुमकुम पायल
नारी के जीवन श्रृंँगार बना
जिसकी खातिर हमेशा नारी ने
अपने सपनों को बलिदान दिया
जकड़ी रही हरदम वो
रिश्ते-नाते की जंजीरों में
पर झुकी नहीं टूटी नहीं
डटकर चुनौतियों से लड़ती रही
रीति-रिवाज की तोड़ बेड़ियाँ
ज्यों ही उसने दहलीज लांघी
अपने बुलंद हौसले से जल्दी
दुनियाँ में अपनी पहचान बना ली
क्या धरती क्या अंबर
वो अंतरिक्ष में भी जा पहूंँची
गृहकार्य हो या रणभूमि
नारी शक्ति की जय गूंजी
नहीं डरती आज की नारी
वो तो मिराज विमान उड़ा आई
दुश्मन के घर में घुसकर
आतंकियों को मार गिरा आई
नारी ने अपनी पहचान बनाई 
आज की नारी सब पर भारी
वो अब किसी से नहीं डरने वाली
वो अगर जन्मदात्री है अन्नपूर्णा है
तो दुर्गा है काली कल्याणी है
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, March 6, 2019

मैं ही प्रलय हूँ

बसंत की बहार हूँ
फागुन की धूप हूँ
मधुमास का प्यार 
और होली का रंग हूँ
आकाश का मौन हूँ 
पंछियों का कलरव हूँ
लय बद्ध गीत हूँ
हवा का झोंकें में
जीवन की सरगम हूँ
फागुन बसंत मै
 रंगों से सराबोर हूँ
भोर के आँगन में 
बिखरी हुई धूप हूँ
आँखों में लगे काजल-सी 
गहरी काली रात हूँ
बादलों के आँगन में 
 तारों की झिलमिलाहट हूँ
समंदर की लहरों 
का छुपा हुआ क्रौध हूँ
चाँद की मैं चाँदनी
मैं ही ओस की बूँद हूँ
पतझड़ का सूनापन
 बरखा की बहार हूँ
मैं प्रकृति का अद्भुत
अनुपम सौंदर्य हूँ
धरती हूँ आकाश हूँ 
हवा मैं पानी मैं
मुझसे ही ज़िंदगी है 
हाँ मैं सृष्टि हूँ 
सहेज लो समेट लो 
मुझको सँवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, March 5, 2019

ग़रीब की ज़िंदगी

दिन बीता रात गहराई
मजबूरी की फिर बिछी चारपाई
चिंता की ओढ़कर चादर
आँखों में नमी है छुपाई

बच्चों के मन को बहलाते
बातों के फिर बताशे बनाकर
कल खिलाएंगे दूध-मलाई
मुश्किल से रोककर रुलाई 

नींद आँखो से कोसो दूर
ग़रीबी को कोसते होकर मजबूर
होंठों पर मीठे लोरी के सुर
बच्चों को बहलाते फुसलाते

हिसाब की गठरी को
खोलते बांधते कटती रातें
कभी मजदूरी तो कभी मजबूरी में
कट ही जाती गरीब की ज़िंदगी
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, March 2, 2019

शिव विवाह

चले भोले भंडारी
विवाह रचाने
तन पर भस्म लपेटे
सिर पर जटाएं बांधे
सर्पों की पहनें
गले में मालाएं
रूप अनोखा है
भोले बाबा का
चोड़ा है ललाट
कमर में
पहनें मृगछाल
कर बैल पर सवारी
आए भोले भंडारी
बलशाली काया
बाबा त्रिनेत्र वाला
देख रूप उनका
मूर्छित होती माता
कोमल सुकुमारी
कन्या मेरी गौरी
कैसे जोगी से
विवाह रचाने चली
औघड़ दानी है यह
जटा जूट धारी यह
भूत प्रेत
जिसके हों संगी साथी
बिच्छु,सर्प,बैल
चलत शोर करें
अज़ीब बाराती लेकर
साथ में नाचें
डम-डम-डम
डमरू बाजे
डरे देख जन सारे
यह वर है कैसा
जिसका तो है
रूप भयंकर
समझ नहीं पाए
लीला यह कोई
यह देवों के देव
हैं शिवशंकर
भयभीत नयन
देख मुस्काए
बदला महादेव ने
रूप अनूपम
छवि आलौकिक
देख कर सारे
हो रहे अभिभूत
महादेव के
विवाह के कराने
विधि ने रचा विधान
सोलह श्रृंँगार
कर आई पार्वती
मंत्र-मुग्ध सब देखें
मात छवि मोहनी
शुरू हुई शिव-शक्ति की
विवाह की विधि
देवगण पुष्प
बरसाते प्रसन्नचित
सृष्टि का कण-कण
हुआ हर्षित
सम्पूर्ण हुईं
विवाह की विधि
शिव की बनी
गौरी अर्द्धांगिनी
***अनुराधा चौहान***

Friday, March 1, 2019

काश न होती यह सरहदें

छूना न पाए सरहद कोई
मर-मिट जाते हैं वीर सपूत
सरहद की रखवाली करते
दुश्मन को करते चकनाचूर

वतन की खातिर ही जीते हैं
वतन की खातिर मिट जाते
देखें कोई आँख उठाकर
उसके लिए काल बन जाते

गर्व हमें हैं इन वीरों पर
अद्भुत इनकी मिशाल है  
 ढाल बने और खड़े हुए हैं
सरहद पर वीर जवान है

 वतन की शान की खातिर
बहा देते लहु अपना
सरहद पर सदा लहराए
तिरंगा के बसाए सपना

काश ना होती यह सरहदें
नफ़रतें बढ़ाती हैं यह सरहदें
बांटती है दिलों को सरहदें
इंसानों को बांटती है यह सरहदें

खींच कर लकीरें दिलों में
जातियों में बांटती सरहदें
कभी धर्म के नाम कभी जाति नाम
हमें आपस में लड़वाती सरहदें
***अनुराधा चौहान***

हमारी मातृभूमि

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
मातृभूमि है जान हमारी
मातृभूमि की शान निराली
मातृभूमि की रक्षा के लिए
वीरों ने दी हरदम कुर्बानी

मातृभूमि की आजादी के लिए
वीरों ने सदा संग्राम किया
राजगुरु,सुखदेव,भगत सिंह
आज़ाद जैसे वीरों ने जन्म लिया

मातृभूमि की माटी चंदन
मातृभूमि तेरा नित वंदन
जन्म लिया है इस माटी में
वीरों के वीर है अभिनंदन

कान खोल कर सुन लो
वीरों की ललकार को
आँख उठा कर ना देखना
भारत की आन-बान-शान को

मातृभूमि के वीर जवान थे
जो कारगिल युद्ध में विजय हुए
इसकी माटी पावन है इतनी
राम, कृष्ण भी यहीं जन्म लिए

देवभूमी यह कर्मभूमि यह
हमारी प्यारी मातृभूमि यह
शान में इसकी जान भी देंगे
वीरों की जननी है यह

माटी में वीरों का लहु मिला
कण-कण इसका पावन है
करो तिलक इस माटी से
यह माटी नहीं यह चंदन है

मातृभूमि की सेवा करना
हर भारतीय का फर्ज है
इस धरती पर हमने जन्म लिया
इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार