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Saturday, August 31, 2019

जीवन यात्रा

जन्म लेते ही शुरू होती
जीवन की कठिन यात्रा
चार लोगों से रिश्ते में बंधे
घर में संस्कारों को संमझते
सीख लेने ज़िंदगी की
पहली बार घर से निकल
गुरुकुल की और कदम बढ़ा
धीरे-धीरे जीवन को समझ
आगे बढ़ते जाते
हमारी इस जीवन यात्रा में
जुड़ते कई यादगार पल
कुछ नये रिश्ते बनते
कई दोस्त प्रिय बन जाते
कई अनुभवों से होकर
गुजरती जीवन यात्रा
कुछ बेहद कड़वे
कठिनाइयों से भरे
रास्तों से गुजरते हुए
साथ मिलता हमसफ़र का
खुशियों से झूमते
तो कभी लड़ते-झगड़ते
हर परिस्थिति में साथ निभाते
नयी ज़िंदगियों को संवारते
ज़िंदगी के अंतिम
मुकाम पर पहुँचकर
तजुर्बों की पोटली खोलकर
नयी पीढ़ी को सही राह दिखाते
जब प्रभू संदेश आता
तो सब-कुछ पीछे छोड़
अनंत यात्रा पर निकल जाते
फिर से एक नये सफर के लिए
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, August 28, 2019

शून्य

शून्य से आए हैं
शून्य में समा जाएंगे
शून्य के रहस्य को
हम फिर भी न समझ पाएंगे

शून्य में ब्रह्म छुपा
शून्य है परमात्मा
अनेकों रहस्य लिए
शून्य ही है आत्मा

शून्य ही आरंभ है
शून्य में अंत छिपा
शून्य का अनंत विस्तार
कोई भी न समझ सका

शून्य देकर ही जगत को
भारत जग में महान बना
शून्य ही निराकार शिव
शून्य में ब्रह्मांड बसा

***अनुराधा चौहान***स्वरचित ✍️

शर्तों पर ज़िंदगी

शर्तों के धागों में
उलझती जाती ज़िंदगी
चाहे -अनचाहे पलों को
जीने को मजबूर
बालपन से ही
 टाँक दी जाती है
जीवन जीने की शर्तें 
हर बेटियों के दामन में
ज़िंदगी की आजादी है
 सिर्फ दूसरों के लिए
जो नहीं मानती 
शर्तों से परे हटकर
ज़िंदगी जीती हैं आजादी से
अपने तौर-तरीके से
बहुत मुश्किल होता है
पर हार नहीं मानती
वह अलंकृत होती 
कई नामों से पर फिर भी
अपना वजूद को 
कायम रखकर
अपना लोहा मनवा लेती
शर्तों के दायरे में जीने वाली
घर की चारदीवारी  
सिमट कर रह जाती 
ज़िंदगी भर रिश्तों को
 रखती सहेजकर
लड़कर-झगड़कर 
तो कभी प्यार से
रिश्तों के बीच 
खुशियाँ तलाशती
माँ-बहन तो कभी बेटी
 बनकर शर्तें निभाती
और अपने स्वप्न दबा लेती
परिवार की खुशियों तले
***अनुराधा चौहान***

Saturday, August 24, 2019

यादें

रख लिया है
सहेज कर मैंने
इन बहकती नज्मों में
उन हसीन पलों की यादें
तेरी वो शोख अदाएं
महकती हैं ग़ज़ल बनकर 
फूलों से झरते बोल तेरे
गीत बन सजते होंठों पर
रख लिया है
सहेज कर मैंने
मैंने चंद मुलाकातों को
सरगम-सी बजती जब
चूड़ियाँ खनकें तेरे हाथों में
पायल की छम-छम
बना देती थी दीवाना
मेरे मन के जज़्बातों को
रख लिया है
सहेज कर मैंने
मैंने उन अनकही बातों को
मन के तारों को झंकृत करती
बेचैन करती हर रातों को
तन्हाइयों में डूबे मेरे गीत
तेरी आने की आहट लिए
अब तो गुजरते मेरे दिन-रात
तेरी यादों को साथ लिए
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, August 23, 2019

कान्हा तेरे गले का हार

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार

गले में पहनें बैजयंती माला
मोहिनी सूरत गोकुल ग्वाला
माणिक दमके मोती दमके
दमक रहा स्वर्ण हार

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार

सिर पर शोभे मोर मुकुट
नीलवर्ण पीताम्बर धारी
छवि मनमोहक कृष्ण मुरारी
मुख चूमे घूँघर वाले बाल

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार

नन्हे हाथों में थामें मुरलिया
बजा रहे हैं बंशी बजैया
गोप गोपियाँ नाच रहे
सुध-बुध कहीं बिसराए

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार

बाजत पैजनियाँ छनक-छनक
चलत नटवर ठुमक-ठुमक
साँवली सूरज मोहिनी मूरत
बृजमंडल रीझा जाए

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार

नीलवर्ण की छवि अति प्यारी
राधा संग झूमे त्रिपुरारी
कमर करधनी भोली सूरत
पीताम्बर अंग लपटाए

दम-दम दमक रहा
कान्हा तेरे गले का हार
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, August 21, 2019

द्वेष की शिला

रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में 
तोड़कर प्रेम विश्वास
इंसान को है इंसान से 
बांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला 
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है
दीवारें गलतफहमी की
झुकना कोई चाहे नहीं
यह बड़ी है मजबूरी
सोचता है मन यही
काश हो कुछ करिश्मा
मिटाकर दूरियाँ दिलों की
चंदन-सी महक जाएं 
रिश्तों की वादियाँ
***अनुराधा चौहान*** 

Friday, August 16, 2019

दिल में बसी तस्वीर तेरी

बूँद-सा था तेरा प्यार
सैलाब न बन सका

वक़्त की धूप लगी
बूँद-सा ही मिट गया

दिल में बसी तस्वीर तेरी
अब चुभती हैं फाँस-सी 

आहट भी गवारा नहीं मुझे
अब अतीत की याद की

कोसती हूँ उस पल को
तुम पर भरोसा कर बैठी

विश्वास टूटा तो यह जाना
यह सब मेरी गलती थी

ख्वाहिशों के जो पुल मैंने
बाँध रखे थे तेरे भरोसे

कमजोर थे वो बंधन इतने 
भर-भरा के बिखर गए

बिखरती हुई ज़िंदगी की
अब तस्वीर हाथों में रह गई

कोरे कागज-सी यह ज़िंदगी
खाली किताब बनकर रह गई।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, August 13, 2019

देश की खातिर

तीन रंग की ओढ़ के चूनर
लहराती ममता का आँचल
गंगा-यमुना इसकी बेटियाँ
बेटा इसका हिंद महासागर
हिमालय पहरेदार बना खड़ा
कश्मीर सिर का ताज बना
एकता-अखंडता इसका श्रृंगार
सभ्यता-संस्कृति गले का हार
तिरंगे की माँ को पहनाकर ओढ़नी
आजादी के मतवालों ने
धरती माँ की शान खातिर
तन-मन अपना वार दिया
वीर सपूतों ने अपने
जीवन का बलिदान दिया
देश की खातिर जान गंवाकर
तिरंगे में लिपटकर सो गए
पीछे छोड़ बिलखता परिवार
जान वतन के नाम कर गए
यह वीर जवान भारत माँ के
न झुके कभी न झुकने वाले
दिल में बसाए एक ही बात
तिरंगा है हमारा अभिमान
प्रतीक शक्ति का रंग केसरिया
संपन्नता का प्रतीक बना रंग हरा
आपस में सुख-शांति बनी रहे
सफेद रंग देता संदेश सदा
जीवन में सदा रहे गतिशीलता
कहता है नीले रंग का चक्र यही
हिल-मिलकर रहो सब साथ सदा
भेदभाव मिटाकर जात-पात का
भारत माता कहे अपने लाल से
इस तिरंगे की रखना शान सदा
***अनुराधा चौहान***

Sunday, August 11, 2019

दिल है कि मानता नहीं

दिल ही तो मानता नहीं
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
जोड़ता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
आशा की डोली में बैठकर
उड़ने को बेकरार रहता
दिल ही तो मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख किसी का
चुपके-चुपके रो देता
और फिर
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
***अनुराधा चौहान***

Saturday, August 10, 2019

सूना मन

झरे पात से बिखरे सपने
हृदय पीर नयनों से बरसे
बैर लगाए मुझसे सावन
लगता था यह कभी मनभावन
उमड़-उमड़ कर यादें उभरी 
गरज-गरज के यादें बरसी
किस्मत की जब मार पड़ी
छूटी हाथों से रेशम लड़ी
शूल हृदय के पार हुआ जब
समय भी रुक जाता है सहम
समझ न आया जीवन लेखा 
दर्द मिला जब ये अनदेखा
झरते पात से झर गए सपने
पल भर में जब छूटे अपने
सावन सूना मन भी सूना
बागों में पड़ा झूला सूना
पीर हृदय की मिट नहीं
राखी की रौनक दिखे नहीं
नहीं भाती है घटाएँ घनघोर बड़ी
न बूँदों की थिरकन न रिमझिम लड़ी
गरजी दामिनी पर दिल न धड़के
आँख मेरी रह-रहकर फड़के
अरमानों के झरते पात सी
सूखे ठूठ-सी हुई जिंदगानी
मैं विरहन विरह में तड़पती
सावन-सी बदली न मन भाती 
डोले मन का पपीहा प्यासा 
बोले बस यादों में चेहरा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Thursday, August 8, 2019

शर्त

बिना किसी शर्त के
वो चल दी थी 
जीवनसाथी का थाम के हाथ
करती रही मनमानियाँ पूरी
चाहतों को मारकर
ख्व़ाबों को रौंदकर
ऊपर से खिली-खिली
अंदर से मुरझाई-सी
जोड़ती गई ज़िंदगियाँ
अपनी ज़िंदगी से
पालती-पोषती
रिश्तों को संभालती
सरक रही थी ज़िंदगी
बढ़ती उम्र ने दस्तक दी
बुढ़ापे की दहलीज पर
आकर खड़ी
जिस संग नाता जन्मों का
बाँध के चली थी
उम्र की दहलीज पर
टूटी वो कड़ी थी
जीवनसाथी ने छोड़ा साथ 
जीवन हुआ नर्क
उसे देने दो वक़्त की रोटी
बच्चों भी लगाने लगे शर्त
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार


नया सबेरा

सुनहरे अश्वो के रथ पर सवार
आए भास्कर सुनहरी रश्मियों के साथ
कलियों ने उतारा ओस का घूँघट
अंगड़ाई ले इठलाती फूल बन मुस्काई
सूर्य रश्मियों ने जीवन को छुआ
प्रकृति का खिलखिलाया हर कोना
जीवन की सुगबुगाहट तेज हुई
ज़िंदगी अपनी मंज़िल की ओर दौड़ पड़ी
अंशुमाली धीरे-धीरे बीच अंबर पे आया
खिली-खिली धूप ने जग को नहलाया
प्रकृति खुलकर मुस्कुराने लगी
लो सांझ भी अब पास आने लगी
भानु समेटने लगे अपना बसेरा
रश्मियों ने समेट लिया आँचल अपना
फिर आएंगे भानु लेकर नयी भोर
चिड़ियों का बंद हुआ चहकने का शोर 
सांझ के आते ही दे गए फिर से अंधेरा
कल भास्कर के साथ आएगा नया सबेरा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Monday, August 5, 2019

अनमोल हीरा

हीरे से बड़ा अनमोल नगीना
कुदरत ने हमको दिया हैं
बस नज़र चाहिए पारखी
आँखों में बस जाए हीरा असली

एक मिला है हीरा अनमोल
कोहिनूर से दूना उसका मोल
उसकी तेज चमक से हो जाती
आँखें अंधी देश के दुश्मनों की

उपेक्षा सही गालियाँ सुनी
पर अपनी धुन में मगन वो गुणी
करते रहे देशहित के काम
भारत का विश्व में गूँजने लगा नाम

दुनिया उसके कार्य की कायल
वो रत्न बड़ा ही शुभदायक है
देखते ही उसके चमत्कार
सब करने लगे हैं उससे प्यार

कभी सर्जीकल स्ट्राइक कर दी
कभी भ्रष्टाचार मिटाने नोट बंदी 
अबकी किया बड़ा चमत्कार
यह मोदी जी तो बड़े कमाल

देश ने चुना यह अनमोल हीरा
जिसने दिया है नहीं कुछ छीना
कश्मीर से हटाकर दोनों धाराएं
पूर्णतः आज आजाद किया है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, August 3, 2019

पानी-पानी

पानी से जीवन हँसे,
पानी से प्रकृति सजे।
पानी जीवन की मुस्कान,
पानी ही ले-लेता जान।

पानी नहीं तो त्राहि-त्राहि,
पानी-पानी तो त्राहि-त्राहि।
पानी जीवन,पानी मृत्यु,
पानी बिन न चले संसार।

घन नहीं बरसे तो मन तरसे,
घन जोर से बरसे,मन हर्षे।
पानी-पानी अंदर बाहर,
जन-जन पानी को कोसे।

मुश्किलों के बीच जीवन से प्रीत,
पानी के बीच बचपन और जीव।
बहा घर-द्वार नदी की धारा,
ढूँढतीं फिरें ज़िंदगियाँ आसरा

बिखरते सपनें निहारे नयन,
कुदरत के आगे असहाय बैठ।
वर्षा प्रकोप बनकर बरसी,
ज़िंदगी आसरे को तरसती।

अपना महत्व बताए पानी
अपना क्रौध दिखाए पानी
पानी जीवन का आधार है 
पानी ही है मौत का द्वार
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, August 2, 2019

कलम की ताकत

आजादी की आग बनी
बनी क्रांति की ज्वाला
कलम ने अपनी ताकत से
हर एक मन में भरा उजाला

खुशियों का पैगाम बनी
हर दिल का लिखती हाल
यह कलम की ताकत है
इतिहास रचता कलमकार

सजनी की पाती लिखे
लिखती माँ की ममता
पिता का आशीष लिखे
कलम दिल की जुबां बने

बसंत की बहार,होली के रंग
सावन के गीत,तीज की रौनक
साहित्य के सागर में डूबी
कलम नित नए आयाम रचे

शब्दों से संस्कार जगाकर
ज्ञान का प्रकाश फैलाती
ग्रंथों को गढ़कर कलम ने
संस्कृति को नई दिशा दी

तलवार-सी धार बनकर
शब्दों के बाण चलाती
कलम की ताकत कम न समझो
कलम बड़े-बड़े काम कर जाती
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार