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Friday, January 31, 2020

कह मुकरी

सुन बातें नैना मटकाए
मेरी बातों को दोहराए
संग मेरे वो हँसता रोता
का सखि साजन... ‌? ना सखि तोता।

मन को मेरे अति हर्षाता
प्यासे तन की प्यास बुझाता
जिसका रूप लगे मनभावन
का सखि साजन...?ना सखि सावन।

बगिया में वो फूल खिलाता
चुन-चुन कलियाँ हार बनाता
देख जिसे झूमे हर डाली
का सखि साजन...?ना सखि माली।

मन की गहराई में जाता
जो सच है बाहर ले आता
झूठे मनका करता तर्पण
का सखि साजन...?ना सखि दर्पण।

सुबह-सुबह से मुझको छेड़े
घर की छत पर मुझको घेरे
छूने से जुल्फें लहराई
का सखि साजन...?ना सखि पुरवाई।

मेरे आगे-पीछे डोले
लगता है मुझसे कुछ बोले
मेरे मन को है अति भाया
का सखि साजन...?ना सखि साया।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 29, 2020

अनु की कुण्डलियाँ --9

49
धागा
धागा बाँधा प्रेम का,मन में लेकर आस।
बहना को भैया सदा,रखती दिल के पास।
रखती दिल के पास,सदा ममता से छलकें।
बाँधा धागा प्रेम,खुशी से भीगी पलकें।
बहना का दिल तोड़,चला मुख फेर अभागा।
नैनो में दे नीर,सदा को तोड़ा   धागा।

50
बिखरी
बिखरी किरणें धूप की,आयी उजली भोर।
लाली लाली देख के,मुस्काती है जोर।
मुस्काती है जोर,लली पलना में खेले।
चहकी चिड़िया भोर,सजे फूलों से ठेले।
कहती अनु यह देख,धरा की आभा निखरी।
सरसों फूली खेत,गली में किरणें बिखरी
लाली--बिटिया
लाली--लालिमा
51
गलती
गलती कर-कर सीखते,करते ऊँचा नाम।
गलती देती सीख ये,करले अच्छे काम।
करले अच्छे काम,तभी तो मंजिल मिलती।
सपने हो साकार,कली फिर दिल की खिलती।
कहती अनु सुन बात,बुराई पीछे चलती।
गलती से ले सीख,नहीं फिर होती गलती

52
बदला
जाने कैसा हो गया,मौसम का अब हाल।
बदला बदला रूप है,मानव है बेहाल।
मानव है बेहाल,चढ़ा मौसम का पारा।
करनी अपनी देख,मिटा के उपवन सारा।
रोता अब है बैठ, फिर भी गलती न माने।
बदला मौसम देख,खुद को न दोषी जाने।

53
दुनिया
दुनिया अद्भुत है बड़ी,गहरे इसके राज।
जाने कब यह कौन सा,छेड़े कोई साज।
छेड़े कोई साज,कहीं लहरों की सरगम।
दुनिया बड़ी अजीब,कभी जलती है हरदम।
कहती अनु सुन साज,कहीं पे चहकी मुनिया।
गाती मधुर गीत,बड़ी ही प्यारी दुनिया।

54
तपती
तपती धरती देख के,मानव हुआ अधीर।
करनी से खुद ही सहे,मौसम की दी पीर।
मौसम की दी पीर,सही अब जाए कैसे।
करनी का फल भोग, चला क्यों रोता ऐसे।
उपवन उजड़े देख,धरा फिर हौले कँपती।
डोले धरती जोर,हवा भी जम के तपती।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, January 28, 2020

सुनो विनती

फिके पासे चले थे दाँव
जुए में हारा था सम्मान
फँसे सब जाल में ऐसे
निकलें तो किधर कैसे

लगा दी दाँव पे नारी
बने सभी अत्याचारी
दुशासन हाथ में सौंपी
जुए में हारकर नारी

बँधे वचनों से थे बैठे
पितामह पलकों को मूँदे
पकड़ केशों को खींची थी
बेचारी नार अबला थी

पुकारा जार-जार रोकर
हवाला रिश्तों का देकर
बँधी आँखो में पट्टी थी
रोती सभा में द्रोपदी थी

सुनो विनती चले आना
भरोसा तुमपे अब कान्हा
यहाँ बैरी बने हैं अपने
टूटकर बिखर गए सपने

बढ़ाया चीर कृष्णा ने
निभाया सच्चा था रिश्ता
छल के जाल में फँसी
पांडवो की मर्यादा

चले कई दाँव दुर्योधन ने
कोई भी काम न आया
महाभारत युद्ध भयंकर था
भाई के समक्ष खड़ा भाई

धर्म का मार्ग जो रोका
बने फिर सारथी कान्हा
जिताकर युद्ध पांडवों को
कर्म की राह सिखलाई

*** अनुराधा चौहान***

Sunday, January 26, 2020

जहाँ जाना चले जाओ

जहाँ जाना चले जाओ
कभी फिर लौट के आओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।

किया विश्वास तभी टूटा
दिया था साथ वो छूटा।
लगी जब चोट सीने पे
तभी दिल का भरम टूटा।
भले अब लौटकर आओ
हमें झूठा न बतलाओं।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।

न मानी बात अपनों की
मिटा दी चाह सपनों की।
चला सब छोड़ के ऐसे
कमी तुझमें सदा से थी।
 बिना तेरे बहुत खुश हैं
यहाँ से तुम चले जाओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।

तेरे के ख्याल में खोए
सदा दिखते रहे सोए।
हमीं पागल बने ऐसे
मिले धोखे तभी रोए।
आँसू पोंछ लिए हमने
झूठी सूरत दिखलाओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।

यही सोचे कभी ये दिल
मिला क्या आज तुमसे मिल।
नहीं भूला मिला धोखा 
नहीं बदला बिचारा दिल।
अभी भी सोचता अक्सर
कहीं हमसे न टकराओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 23, 2020

गणतंत्र दिवस

जन-जन में भरने जोश नया
गणतंत्र दिवस फिर आया है
भारत माँ का स्वागत करने
ऋतुराज बसंत मुस्काया है।

तीन रंग का पहने तिरंगा
देता विजयी संदेश सदा
धरती अपनी अम्बर अपना
अमर है हमारी अखंडता

बैर भुला दो,भूलो झगड़े
बुझा दो नफ़रत की चिंगारी
कोई छोटा-बड़ा नहीं है
सब अपने हैं बहन-भाई

उठो युवाओं आँखें खोलो
किस पथ आकर खड़े हुए
 कुर्बानी वीरों की याद करो
जो इस धरती पर शहीद हुए

कितनी पीड़ा सही उन्होंने
तब हम जाकर आजाद हुए
भारत की गरिमा के लिए
बच्चे-बूढ़े भी संघर्ष किए

क्या भविष्य को सीख हम देंगे
जब देश जला रहे खुद अपना
मानव का मानव हो साथी
यही शहीदों का था सपना

अपने मन को आज जगालो
हृदय देशप्रेम की ज्वाला हो
मिट जाए अज्ञान का अंधेरा
यही लक्ष्य हमारा सपना हो
***अनुराधा चौहान***

Friday, January 17, 2020

फागुनी छू कर गई

फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।
ऋतुराज का संदेश लिए,
गीत मधुर सुना गया।।

पलाश फूले डालियों पर‌,
दहक उठे अंगारों से।
खिलखिलाती धूप आ रही,
संदेश ले मधुमास के।
उल्लास भरता बसंत मन में,
तन मेरा सहला गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

कोयल की कूक से चहकी,
धुन कोई मधुमास की।
अमराई संग महका मन,
महकती पुरवाई भी।
पीले पीले खेत सरसों,
खिल चूनर लहरा रहा।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

फागुन की रौनक बसी है,
होली का त्यौहार में।
भाँग के मस्ती में झूमते,
लोग गली हर गाँव में ‌।
बज उठे हैं ढोलक ताशे,
सरगम बजती फाग की।
मच रही है धूम हर ओर,
खुशियाँ हैं बरसा गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

गुमशुदा है कोई मुझमें

गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढ के बतलाऊँ कैसे
गुम हुई खुशियाँ कोई
चाँद छूटा तारे छूटे
आँखों के नजारे छूटे
बंद कर खिड़कियों को
हम किस किनारे बैठे
रात के तन्हाईयों में
फिर गिरा तारा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढते हैं अब कहाँ हम
मुझमें जो खोया कोई
प्यास जीवन की अमिट
नाम न बुझने का ले
मन के आँगन में खड़ी
याद की परछाई तले
एक धुँधली-सी सूरत
देख मैं रोती रही
धुँध की बदली में छुपकर
खुद में ही खोती रही
कहीं सिसकती बदलियाँ का
राग सुना रहा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, January 14, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--8

43
गहरा
छाया अँधियारा घना,कैसी काली रात।
छोड़ा साथी साथ जो,गहरा दिल पे घात,
गहरा दिल पे घात,चला होंठों को भींचे।
आँसू की बरसात,रही अँखियों को मींचे।
कहती अनु यह देख,समय यह कैसा आया।
सबने छोड़ा साथ,ढूँढती अपनी छाया।

44
आँगन
कृष्णा आँगन में बँधा,करे चिरौरी मात।
माखन चोरी की सभी,करते झूठी बात।
करते झूठी बात,मातु मैं नन्हा बालक।
छोटे-छोटे हाथ,सखा के झूठे पालक।
माखन मुख लपटाय,मिटाते अपनी तृष्णा।
मैया दोषी जान,विटप से बाँधी कृष्णा

45
आधा
आधा शिव का रूप है,आधी गौरा वाम।
गौरी शंकर रूप का,पूजन आठों याम
पूजन आठों याम,अर्द्धनारीश्वर भोले।
शिवशंकर साकार,गले में विषधर डोले।
देखी अनु शुभ रूप,मिटी जीवन से बाधा।
डम डम डमरू हाथ,सती शिव अंगी आधा।

46
यात्रा
यात्रा जीवन से जुड़ी,नरम गरम सी छाँव।
बरसे खुशियों की झड़ी,कहीं दुखों का गाँव।
कहीं दुखों का गाँव,अकारण पाले दुविधा।
करते नित संघर्ष,कहाँ सब पाते सुविधा।
कहती अनु कुछ सीख,गिनों सुख दुख की मात्रा।
धूप छाँव सम भार,यही है जीवन यात्रा

47
मेला
मेला दुनिया है बनी,मानव खेले खेल।
जीवन में मिटता दिखे,मानव मन का मेल।
मानव मन का मेल,बने हैं सब व्यापारी।
खोए सुख औ चैन,दुखी हो दुनिया सारी।
कहती अनु सुन बात,समय सुख दुख का रेला।
मानव जोकर रूप,बना जग सारा मेला।

48
कोना
कोना मन का साफ हो,दिल हो निर्मल नीर।
कोने में ही हैं छुपी,कड़वी जीवन पीर।
कड़वी जीवन पीर,छुपी हर मानव मन में।
मुखड़े पर मुस्कान,जले दिल पावक वन में।
कहती अनु सुन बात,मिटा दो अब हर रोना।
खुशियाँ चारों ओर,खिले मन कोना-कोना।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, January 11, 2020

तस्वीर पुरानी यादों की

धड़क उठी है फिर से, 
 दबी हुई सीने में याद।
नयी साल लेकर आई, 
फिर से यादों की सौगात।

छलक पड़े आँखों से आँसू,
तस्वीर पुरानी यादों की।
तोड़ गए हो जो कबसे,
यादें उन टूटे वादों की।

किस्मत की लाचारी देखो,
खाई अपने दिल पे चोट।
रोक सके न उन खुशियों को,
किस्मत में ही था कुछ खोट।

बरबस आँखें छलक पड़ी,
जब चल पड़ी हवाएं सर्द।
यादों का ऐसा धुआँ उठा,
जगा गया दिल में दर्द।

अब तो जब तक जीवन है,
ये तड़प कभी न कम होगी।
जब-जब तेरी याद आएगी,
ये आँखें यूँ हीं नम होंगी।

टूटेगा न यह रिश्ता,
जब-तक बँधी साँसो की डोर।
अहसासों का यह बंधन,
हरदम खींचे यादों की ओर।

अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 9, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--7

37
धरती

नीले अम्बर की छटा,छटा अंँधेरा दूर।
सूरज सागर से मिला,धरती से अति दूर।
धरती से अति दूर,क्षितिज से मिलता सागर।
दिखता अनुपम दृश्य, सूर्य भरता है गागर।
कहती अनु यह देख,रंग चमके चमकीले।
धरती आभा हरित,गगन सागर हैं नीले।

38
मानव
मानव माया में फँसा,भूला ममता प्यार।
अपनों का बैरी बना,पाले मतलबी यार।
पाले मतलबी यार,मिटा अपनों का साया।
करता अत्याचार,घिरा परदेशी माया।
कहती अनु यह देख,बना मानव अब दानव।
भूला अपनी प्रीत, मतलबी बनता मानव।

39
छाया
छाया तरुवर की सदा,छाए चारों ओर।
चहके चिड़िया नीड़ में,उजली सुंदर भोर।
उजली सुंदर भोर,रहे हरियाली धरती।
कलियाँ बनती फूल,महक जीवन में भरती।
कहती अनु सुन आज,बड़ी सुंदर यह माया।
चलो लगाएं पौध,मिले तरुवर की छाया

40
निर्मल
निर्मल बहती जो नदी,दलदल बनती आज।
मानव कारण है बना,करके उलटे काज।
करके उलटे काज,बनते प्रकृति के  दुश्मन।
जंगल हुए उजाड़,उतने ही बढ़ते व्यसन।
कहती अनु यह देख,धरा होती है निर्जल।
रोको महाविनाश,नदी फिर बहती  निर्मल।
41
सरिता

सागर से सरिता मिले,होके एकाकार।
जीवन को संदेश दें,भूलो सभी विकार।
भूलो सभी विकार,नहीं सम होते प्राणी।
कड़वे मीठे बोल,कहीं मिसरी सी वाणी।
कहती अनु सुन आज,अहं की खाली गागर।
दिल में भर लो प्रीत,हृदय करुणा का सागर।

42
गागर
गागर लेकर गोपियाँ,भरती शीतल नीर।
जल में फिर क्रीड़ा करें,तट पर धर कर चीर।
तट पर धर कर चीर,वसन  सब हरे मुरारी।
चढ़े कदम की डाल,लजाएं सखियाँ सारी।
विनती करती साथ,सुनो हे गिरधर नागर।
अब न करेंगे भूल,लाज की छलके गागर।

*** अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 8, 2020

उलझनें

ज़िंदगी की उलझनों के
कुछ इस तरह उलझे
एक सिरा खींचा तो
दूसरे में जा उलझे
न मिला है कोई छोर
जो सुलझे हर डोर
बेवजह के पाले थे
शौक न जाने कितने
ज़िंदगी करदी अपनी
दिखावे के हवाले
रंग तो बहुत मिले
पर चैन अपनों का छूटा
साथी कई मिले
दिल अपनों का टूटा
ठोकरें जब मिली
तब ये होश आया
दिखावे ने कितना
अकेलापन दिलाया
चोट दिल पे लगाकर
अपनों को किया जुदा
चूर होकर घमंड से
खुद को समझ बैठे खुदा
आज खुद आ खड़े वही
जहाँ अपनों को छोड़ा
उलझनों के धागों ने
फिर इस दिल को तोड़ा
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

चित्र गूगल से साभार

Sunday, January 5, 2020

अनु की कुण्डलियाँ-6

31
अम्बर
अम्बर पे लाली खिली,आई उजली भोर।
सूरज की किरणें जगी,जीवन करता शोर।
जीवन करता शोर,कमल दल लगे महकने।
कलियाँ बनती फूल, गगनचर लगे  चहकने।
कहती अनु यह देख,चल दिया आज दिसम्बर।
नववर्ष मंगलमय,चमकता सूरज अम्बर।

32
कोयल
 कूके कोयल डाल पे,आया है मधुमास।
अमराई की गंध से,मन में जगती आस।
मन में जगती आस,नशा यौवन पे छाया।
झरते फूल पलाश,मगन फागुन बौराया।
कहती अनु सुन मीत,खुशियों के पल न चूके।
फागुन के सुन गीत,डाल पे कोयल कूके।

(33)
वीणा
बजते जीवन में सदा,मन वीणा के तार।
देती वर माँ शारदे,मिटता तम का भार।
मिटता तम का भार,हरे जीवन से संकट।
करती जग उद्धार,मिटा सब काँटे कंटक।
कहती अनु यह देख,सुरों से जीवन सजते।
कोमल खिलते फूल,तार वीणा के बजते।

(34)
नैतिक
भाई भाई में मची,मेरा तेरा लूट।
नैतिक बातें भूल के,देते गाली छूट।
देते गाली छूट,बने आपस में बैरी।
भूले मन की प्रीत,बसी मन खट्टी कैरी।
कहती अनु सुन बात,बड़ी है किस्मत पाई।
सबसे सच्चा साथ,सदा देता है भाई।

35
भारत
सारी दुनिया में बढ़ी,भारत की पहचान।
वीरों की यह भूमि है,हम सबका है मान।
हम सबका है मान,हमे प्राणों से प्यारा।
भारत देश महान,जगत में सबसे न्यारा।
कहती अनु सुन आज,समय की यह बलिहारी।
भारत की संतान,दुखी हैं बेटी सारी।
36
विजयी
माखन मटकी फोड़ के,छेड़े मुरली तान।
आँचल में माँ के छुपा,ले विजयी मुस्कान।
ले विजयी मुस्कान,नटखट है नंदलाला।
मैया माने झूठ,लाल है भोला भाला।
कहती अनु सुन मात, करें लीला मनभावन।
फोड़ी मटकी आज,बैठ के खाता माखन।

***अनुराधा चौहान***

Friday, January 3, 2020

नव विहान

राग-द्वेष में क्या रखा है
नवयुग का निर्माण हो
जनमानस के जीवन में 
सुखद भरा विहान हो
महक उठे वन-उपवन
महक उठा यह संसार
अम्बर से धरती तक
खुशियों की दस्तक देने
आया नव विहान
सुर्य की बिखरी लाली
जीवन में बन खुशहाली
रश्मियों का आँचल डोले
कानों में हौले से बोले
कब-तक यूँ चुप बैठोगे
नवगीत निर्माण हो
जनमानस के जीवन में
खुशियों भरा विहान हो
चहकते यह पंछी सारे
नवमंडल में पंख पसारे
तरुवर बोले झूम-झूमकर
उठो अपनी आँखें खोलो
कब-तक द्वेष की अग्नि में
अपने ही घर को फूकोगे
राग-द्वेष में क्या रखा है
नवयुग का हो निर्माण
जनमानस के जीवन में 
खुशियों भरा विहान हो
***अनुराधा चौहान***

Thursday, January 2, 2020

कुण्डलियाँ छंद--5

(25)
अविरल
अविरल आँखों से बहे,आँसू बनकर पीर।
बेटी को करके विदा,कैसे धरते धीर।
कैसे धरते धीर,चली प्राणो से प्यारी।
सूना होता द्वार,सजी है कितनी न्यारी।
कहती अनु यह देख,प्रथा यह कैसी अविचल।
छूटा बेटी साथ,नयन बहते हैं अविरल।
(26)
सागर
ममता सागर से भरी,माँ जीवन की आस।
रखती है संतान को,अपने आँचल पास।
अपने आँचल पास,नहीं दुख छूने पाए।
डरता माँ से काल,कभी जो छूने आए।
कहती अनु सुन आज,मात की अद्भुत छमता।
भागे संकट शीश,मिले जो माँ की ममता।
(27)
भावुक
सीता सीते जानकी, लेते सिय का नाम।
भ्राता लक्ष्मण साथ में,भावुक होते राम।
भावुक होते राम,मिली न सिया सुकुमारी।
पूँछें पंछी पुष्प,कहाँ हैं जनक दुलारी।
देखे राम का दुख,दिवस भी दुख में बीता।
मुरझा गया उपवन,हर लिया रावण सीता।
(28)
विनती
राधे राधे बोल के,मिल जाते घन श्याम।
करले इस संसार में,विनती आठों याम।
विनती आठों याम,बड़ी है लीला प्यारी।
मीरा चाहे श्याम,लगन राधा की न्यारी।
नटखट है गोपाल,हाथ में मुरली साधे।
चाहत कान्हा दरश,बुलाओ राधे राधे।

(29)
अनुपम
सुंदर शिव का रूप है,जोगी भोला नाम।
डमरू त्रिशूल हाथ में,अनुपम इनका धाम,
अनुपम इनका धाम,सती के संग बिराजे।
गौरी नंदन साथ,डढ़म डम डमरू बाजे।
कहती अनु शिव नाम,भाव से भरा समुंदर।
शिव है आदि अनंत, देवों में देव सुंदर।

(30)
धड़कन
धड़के धड़कन जोर से,धड़धड़ की आवाज।
जीवन जीता जीव जो, बजता दिल का साज।
बजता दिल का साज,बजे जीवन में सरगम।
धड़कन देती साथ,सुखों का रहता संगम।
कहती अनु सुन बात,उठो सब जागो तड़के।
करो सबेरे सैर,खुशी से दिल भी धड़के।

***अनुराधा चौहान***