(चित्र गूगल से संगृहीत) |
यह कैसी बलिहारी समय की
यह कैसी बलिहारी
घर में मां बाप भूखे सोते
बच्चे बाहर मौज करें
इतनी पीड़ा दे
अपने जनक को
कैसे उनको चैन पड़े
फेसबुक पर ज्ञान बिखेरते
फादर डे,मदर डे
सेलिब्रेट करें
सेलिब्रेट करें
घर पर दो घड़ी वक्त नहीं
बैठ कर उनसे बात करें
कैसे तुमको पाल-पोस कर
उन्होंने इतना बड़ा किया
अपनी शानो-शौकत की खातिर
तुमने उन्हें भुला दिया
कल तुम भी मां बाप बनोगे
इस बात का ध्यान करो
इतिहास खुद को दोहराता है
इसलिए उनका सम्मान करो
***अनुराधा चौहान***
Very nice
ReplyDeleteThanks Abhilasha Di
Deleteविडम्बना है ये समय की या संस्कारों नही पता बस समय नैतिकता को गर्त मे धकेल रहा है भौतिक वाद सर चढ़ बोल रहा है पाश्चात्य संस्कृति संस्कारों वाले देश मे नाच रही है।
ReplyDeleteयथार्थ रचना सार्थक संदेश देती, चिंतन देती ।
धन्यवाद कुसुम जी में आपके विचारों से सहमत हूं
Deleteविचारणीय सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह 👌
बढ़ते समय के साथ घटते संस्कार बेहद चिंता का विषय है
सत्य कहा आंचल जी आपने सादर आभार
Deleteवर्तमान स्थितियों को आइना दिखती रचना चिंतनीय विषय है ..
ReplyDeleteधन्यवाद सुप्रिया जी
Deleteये आज का समय है ... जिसको कोई जान महि पाता ।।।
ReplyDeleteबढ़िया रचना है .।।
धन्यवाद आदरणीय
Deleteयथार्थ से रूबरू करती रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद लोकेश जी
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