मन को बहुत तड़पाता है
माँ तेरा घर बहुत याद आता है
जब भी तकलीफ में होती हूँ
बस उन लम्हों में
तुझ को ही जीती हूँ
याद आता है
ममता का आंचल
याद आता है
तेरा प्यार से सहलाना
माँ तुझसे ही सीखा है मेंने
खुद को भूलकर
सबको खुशी देना
सबके उठने से पहले उठना
सबके सोने के बाद सोना
माँ याद आता है
वो बीता हुआ बचपन
पापा से लाड़ लगाना
और बाबा के किस्से
दादी की कहानियां
वो भाई से झगड़ना
बहनों संग हंसी ठिठोली
वो कागज की नाव
वो कपड़े की गुड़िया
वो आंगन का कोना
जहाँ खेलती थी हम सखियां
मन को बहुत तड़पाता है
माँ तेरा घर बहुत याद आता है
***अनुराधा चौहान***
मन को छूती हुयी ...
ReplyDeleteमाँ तो पैदा होने के साथ ताउम्र साथ रहती है ... उसकी कमी हमेशा खलती है ... बहुत सुंदर रचना ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteप्रिय अनुराधा जी ---मैं भी अबकी बार मायके ना जा पाई - अपनी गृहस्थी में कभी कभी ऐसी मजबूरियां हो जाती हैं कि मायके का लालच छोड़ना पड़ता है पर भीतर बसी माँ के घर की यादें वो स्नेह का बिछोना होता है जिसपर मन अनंत संतोष पाता है | भावपूर्ण पंक्तियों के लिए आपको सस्नेह बधाई |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी हर शादीशुदा नारी के जीवन का दु:ख है हम अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं पर माँ से दूर होने का दर्द चुपचाप सहन करते हैं
Deleteसच ....ये हम सब का साझा दुःख है ....बहुत याद आती है माँ की ....
ReplyDeleteसही कहा रेवा जी हम सब का साझा दुःख है
Deleteसादर आभार
दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योती जी
Deleteबेहतरीन......
ReplyDeleteहर नारी मन के भाव सुनाता
माँ तेरा घर याद है आता !
👍👍👍👍👍👍👍👍👍
सादर आभार इंदिरा जी
Deleteखूबसूरत एहसास। बहुत अच्छा लिखा आप ने। हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deleteसादर आभार आदरणीय
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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