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Thursday, July 19, 2018

कैसे बीते सावन


बागों में झूले पड़ गए
ऋतु मनभावन सावन आई
प्रिय को मेरे संदेश तु दे आ
सुनरी ओ पवन पुरवइया
भूल गए हों तो याद दिलाना
व्यथा मेरी तुम उनसे कहना
कहना कोयल कूक रही है
श्रावण गीत की धूम मची है
डाली डाली पर झूले पड़े हैं
मस्ती में सब झूल रहे हैं
मैं विरहन तेरा रस्ता निहारे
आमुआ की डाली पर झूला डाले
तुम बिन विकल हुआ जाए मन
कैसे बीते अब यह सावन
***अनुराधा चौहान***

10 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर

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  2. वाह उम्दा बेहतरीन, पड़ गये झूले सावन रुत आई अजहू ना आये सांवरिया मै ऊभी ने उड़ीकू बाट रे ।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए 🙏

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  3. विरहन की मार्मिक व्यथा कथा....

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  4. अति उत्तम भाव विभोर कर देने वाली रचना

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  5. आहा बहुत सुंदर

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