बागों में झूले पड़ गए
ऋतु मनभावन सावन आई
प्रिय को मेरे संदेश तु दे आ
सुनरी ओ पवन पुरवइया
भूल गए हों तो याद दिलाना
व्यथा मेरी तुम उनसे कहना
कहना कोयल कूक रही है
श्रावण गीत की धूम मची है
डाली डाली पर झूले पड़े हैं
मस्ती में सब झूल रहे हैं
मैं विरहन तेरा रस्ता निहारे
आमुआ की डाली पर झूला डाले
तुम बिन विकल हुआ जाए मन
कैसे बीते अब यह सावन
***अनुराधा चौहान***
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार रेवा जी
Deleteवाह उम्दा बेहतरीन, पड़ गये झूले सावन रुत आई अजहू ना आये सांवरिया मै ऊभी ने उड़ीकू बाट रे ।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए 🙏
Deleteविरहन की मार्मिक व्यथा कथा....
ReplyDeleteअति उत्तम भाव विभोर कर देने वाली रचना
ReplyDeleteआहा बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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