सखी डाला रे हिण्डोला यादों का
पहले झूली मैया की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
आँखों से ममता रस बरसे
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी ..........................
दुजी झूले बहनों की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
गीत मगन हो सावन के गाएं
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी............................
फिर झूली बचपन की यादें
साथ ले आईं भैय्या की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
अपनी बहन से नेह लगाए
आंँखें मेरी भर भर आएं
सखी...................…........
अब के सावन पिया संग झूलूँ
मायके को कैसे भूलूँ
बाबुल का हिंडोला मन में बसाए
हौले हौले में उसे झुलाऊं
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी डाला रे हिण्डोला यादों का
***अनुराधा चौहान***
अप्रतिम!! सच सब कुछ आंखों के सामने परिलक्षित हो रहा है।
ReplyDeleteमन को छू गई प्यारी रचना।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteअद्भुत अपूर्व रचना
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteबहुत भावमयी रचना जो अंतस को छू जाती है..
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय भास्कर जी
Deleteबहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार आपका मेरी रचना को साझा करने के लिए 🙏
Deleteहिंडोले और मायके का गहरा संबंध है। ससुराल में भी ननद भाभियाँ मिलकर झूलती हैं तो इसके पीछे आपसी प्रेम बढ़ाने, रिश्तों को मजबूत करने की मानसिकता जरूर रही होगी। बहुत सुंदर भावभीनी रचना है।
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