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Friday, July 20, 2018

हिण्डोला यादों का

सखी डाला रे हिण्डोला यादों का
पहले झूली मैया की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
आँखों से ममता रस बरसे
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी ..........................
दुजी झूले बहनों की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
गीत मगन हो सावन के गाएं
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी............................
फिर झूली बचपन की यादें
साथ ले आईं भैय्या की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाए
अपनी बहन से नेह लगाए
आंँखें मेरी भर भर आएं
सखी...................…........
अब के सावन पिया संग झूलूँ
मायके को कैसे भूलूँ
बाबुल का हिंडोला मन में बसाए
हौले हौले में उसे झुलाऊं
आँखें मेरी भर भर आएं
सखी डाला रे हिण्डोला यादों का
***अनुराधा चौहान***


12 comments:

  1. अप्रतिम!! सच सब कुछ आंखों के सामने परिलक्षित हो रहा है।
    मन को छू गई प्यारी रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी

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  2. बहुत सुंदर रचना

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  3. अद्भुत अपूर्व रचना

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  4. बहुत भावमयी रचना जो अंतस को छू जाती है..

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    1. धन्यवाद आदरणीय भास्कर जी

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  5. बहुत प्यारी रचना

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सहृदय आभार आपका मेरी रचना को साझा करने के लिए 🙏

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  7. हिंडोले और मायके का गहरा संबंध है। ससुराल में भी ननद भाभियाँ मिलकर झूलती हैं तो इसके पीछे आपसी प्रेम बढ़ाने, रिश्तों को मजबूत करने की मानसिकता जरूर रही होगी। बहुत सुंदर भावभीनी रचना है।

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