तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
सुबह चाय की प्याली ले
मेरा इस कुर्सी पर बैठना
तुम्हें बहुत अच्छा लगता था
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
मेरा हौले से बालों का खोलना
धीरे से उन्हें लहराना
तुम्हारा मुझे देख मुस्कुराना
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
मेरे समीप बैठ कर
तुम ढ़ेर सारी बाते करते थे
हौले हौले कुर्सी हिलाते
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
शायद तुम मुझे नहीं भूले
इसलिए किसी को
छूने नहीं देते यह कुर्सी
आज भी तुमने वहीं रख छोड़ी है
तुम्हें याद है
तुम मुझे भूले नहीं
इसलिए कुर्सी पर बैठ
मेरे एहसास को महसूस करते हो
हरपल अपने पास
तुम्हें सब याद है
***अनुराधा चौहान***
या तुम मुझे भूल गए
सुबह चाय की प्याली ले
मेरा इस कुर्सी पर बैठना
तुम्हें बहुत अच्छा लगता था
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
मेरा हौले से बालों का खोलना
धीरे से उन्हें लहराना
तुम्हारा मुझे देख मुस्कुराना
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
मेरे समीप बैठ कर
तुम ढ़ेर सारी बाते करते थे
हौले हौले कुर्सी हिलाते
तुम्हें याद है
या तुम मुझे भूल गए
शायद तुम मुझे नहीं भूले
इसलिए किसी को
छूने नहीं देते यह कुर्सी
आज भी तुमने वहीं रख छोड़ी है
तुम्हें याद है
तुम मुझे भूले नहीं
इसलिए कुर्सी पर बैठ
मेरे एहसास को महसूस करते हो
हरपल अपने पास
तुम्हें सब याद है
बस तुम्हारा अहम है
जो तुम्हें कहने नहीं देता
तुमको मेरे पास आने नहीं देता
जो तुम्हें कहने नहीं देता
तुमको मेरे पास आने नहीं देता
कुछ यादें जीवनभर साथ रहती हैं।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ....लाजवाब ।
बहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी
Deleteबहुत सुंदर !!!!!! मनमोहक यादों को संजोती रचना !!!!!शानदार !!
ReplyDeleteधन्यवाद रेनू जी
Deleteबेहतरीन अशआर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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