क्यों बार बार
यूं ही याद आते हो
क्यों बार बार
फिर वही स्वप्न दिखाते हो
क्यों बार बार
प्यार की लौ जलाते हो
क्यों बार बार
मिलने चले आते हो
क्यों बार बार
छोड़ कर चले जाते हो
पर बस अब नहीं
इस बार तुम नहीं
मैं जा रही हूं
बुझा कर लौ प्यार की
तोड़ हर कसम
तोड़ कर हर वादा
बार बार नहीं
सिर्फ एक बार में
तुम्हारे झूठे वादों से
कहीं दूर बहुत दूर
***अनुराधा चौहान***
धन्यवाद दी
ReplyDeleteसुन्दर!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteधन्यवाद रेवा जी
Deleteबहुत सुंदर रचना। रूक जाओ एक बार फिर से। लौ लगी दिल के पनघट पर।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteभाव पूर्ण ... मन की सदा है जिसको लिखा है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर दिल को छुति अभिव्यक्ति... अनुराधा दी।
ReplyDeleteसादर आभार ज्योती जी
Deleteथोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने....लेकिन इंसान समझ नहीं पाता...बहुत अच्छी लगी यह नज़्म
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteआखिर कभी तो स्वाभिमानी मन ऐसा निर्णय लेगा ही | सुंदर भावपूर्ण रचना !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेणू जी
Deleteबहुत खूब!
ReplyDeleteतोड के झुठे राग सभी बस मुक्त हो जाऊं।
सुंदर भाव रचना।