क्यों कोसे हम
किस्मत को अपनी
दीप आस का
जलाएं हम
क्यों कोसे हम
वजूद को अपने
खुद की नई दुनियाँ
बनाएं हम
बैठे-बैठे
कुछ नहीं मिलता
कर्म सभी को करना है
अगर बदलनी है
किस्मत अपनी
तो तूफानों से
लड़ना है
नाम प्रकाशित हो जग में
आओ कुछ ऐसा कर जाएं
किस्मत पर अपनी
सब नाज करें
ऐसी पहचान बना जाएं
***अनुराधा चौहान***
किस्मत को अपनी
दीप आस का
जलाएं हम
क्यों कोसे हम
वजूद को अपने
खुद की नई दुनियाँ
बनाएं हम
बैठे-बैठे
कुछ नहीं मिलता
कर्म सभी को करना है
अगर बदलनी है
किस्मत अपनी
तो तूफानों से
लड़ना है
नाम प्रकाशित हो जग में
आओ कुछ ऐसा कर जाएं
किस्मत पर अपनी
सब नाज करें
ऐसी पहचान बना जाएं
***अनुराधा चौहान***
सही कहा की किस्मत को क्यों कोसे
ReplyDeleteपर किस्मत कुछ न होकर भी बहुत कुछ है
बहुत सुन्दर रचना लिखी आप ने 👌👌👌
धन्यवाद नीतू जी
Deleteसही कहा आपने.....उम्दा लिखा
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteसकारात्मकता से भरी सुंदर कविता
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को साझा करने के लिए 🙏
Deleteबहुत सुंदर सखी कर्म कर किस्मत जरुर बदलेगी, हाथ पर हाथ धर बैठने पर कुछ नही होता ।
ReplyDeleteसंदेश प्रवाह करती रचना ।
बहुत बहुत आभार सखी 🙏
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