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Tuesday, July 24, 2018

क्यों कोसे हम किस्मत को

क्यों कोसे हम
किस्मत को अपनी
दीप आस का
जलाएं हम
क्यों कोसे हम
वजूद को अपने
खुद की नई दुनियाँ
बनाएं हम
बैठे-बैठे
कुछ नहीं मिलता
कर्म सभी को करना है
अगर बदलनी है
किस्मत अपनी
तो तूफानों से
लड़ना है
नाम प्रकाशित हो जग में
आओ कुछ ऐसा कर जाएं
किस्मत पर अपनी
सब नाज करें
ऐसी पहचान बना जाएं
***अनुराधा चौहान***

10 comments:

  1. सही कहा की किस्मत को क्यों कोसे
    पर किस्मत कुछ न होकर भी बहुत कुछ है
    बहुत सुन्दर रचना लिखी आप ने 👌👌👌

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  2. सही कहा आपने.....उम्दा लिखा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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  3. सकारात्मकता से भरी सुंदर कविता

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को साझा करने के लिए 🙏

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  5. बहुत सुंदर सखी कर्म कर किस्मत जरुर बदलेगी, हाथ पर हाथ धर बैठने पर कुछ नही होता ।
    संदेश प्रवाह करती रचना ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी 🙏

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