चाह नहीं खिलौनों की
न किसी बँधन में बँधना चाहूँ
मैं पँछी उन्मुक्त गगन की
बन मस्त मगन उड़ना चाहूँ
रंग बिरंगे फूलों पर
बन तितली उड़ना चाहूँ
संग पवन पुरवाई के
मस्त मगन बहना चाहूँ
या बारिश की बन नन्ही बूँद
नदियां के संग बह जाऊँ
मैं ओढ़ आसमां की चादर
धरती की गोद में सो जाऊँ
पर इस बेदर्दी दुनिया के
पास में न रहना चाहूँ
जीना चाहूँ पल आजादी के
छूना चाहूँ ऊचाईयों को
हरदम मुझको डर लगता है
इस दुनिया के शैतानों से
बस इतनी सी चाह है मेरी
देदो कोई पँख मुझे भी
इतना ऊँचा उड़ जाऊँ
हाथ किसी के में न आऊँ
***अनुराधा चौहान***
न किसी बँधन में बँधना चाहूँ
मैं पँछी उन्मुक्त गगन की
बन मस्त मगन उड़ना चाहूँ
रंग बिरंगे फूलों पर
बन तितली उड़ना चाहूँ
संग पवन पुरवाई के
मस्त मगन बहना चाहूँ
या बारिश की बन नन्ही बूँद
नदियां के संग बह जाऊँ
मैं ओढ़ आसमां की चादर
धरती की गोद में सो जाऊँ
पर इस बेदर्दी दुनिया के
पास में न रहना चाहूँ
जीना चाहूँ पल आजादी के
छूना चाहूँ ऊचाईयों को
हरदम मुझको डर लगता है
इस दुनिया के शैतानों से
बस इतनी सी चाह है मेरी
देदो कोई पँख मुझे भी
इतना ऊँचा उड़ जाऊँ
हाथ किसी के में न आऊँ
***अनुराधा चौहान***
बहुत खूब लिखा । लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deleteअति सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी
Deleteबहुत सुंदर भाव। बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद जीवन जी
Deleteछोटी सी आशा नन्हे मन की विराट मे रह कर विलगता की। वाह !!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
Deleteआपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteमन की छोटी छोटी आशाओं को पालना और उनकी पूर्ति की कामना करती सुंदर रचना ... मन तो पंछी है काश इंसान भी हो पाता ...
ReplyDeleteसही कहा आपने दिगंबर जी सादर आभार 🙏
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