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Monday, September 10, 2018

मैं आई तेरे संग सजना

अहसासों की डोर बाँधकर
 मन में सुनहरे स्वप्न सजाकर
डोली में बाबुल के घर से
मैं आई तेरे संग सजना

अपने बाबुल को छोड़कर
माँ के आँगन को छोड़कर
तुझ संग अपनी प्रीत जोड़कर
मैं आई तेरे संग सजना

अब जाना क्या होता पीहर
भाई बिना जीना है दूभर
नये रिश्तों के बंध में बंधकर
मैं आई तेरे संग सजना

अब नए घर से जोडे नाते
सुनके कड़वी मीठी बातें
अपना कर्म निभाऊँ सजना
मैं आई तेरे संग सजना

छोटी सी अरज ये सुनलो
मुझे चाहें जो कुछ भी कहलो
बस पीहर का मन समझना
मैं आई तेरे संग सजना

 सब-कुछ तुझपे मैं वार दूं
तेरे घर को मैं सवार दूँ
निभाऊँगी सातों वचन अँगना
मैं आई तेरे संग सजना
***अनुराधा चौहान***

23 comments:

  1. प्रेम के खूबसूरत अहसास से भीगी बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  2. प्रेम भाव से भरी यात्रा का बहुत सजीव चित्रण

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  3. बहुत बहुत आभार पम्मी जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए

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  4. वाह !!! बहुत खूब 👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार नीतू जी

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  5. प्रेम से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार ज्योती जी

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  6. समर्पण के भावों से सजी खूबसूरत रचना अनुराधा जी ।

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  7. नारी मन की कोमल बातें....अच्छी लगी। लिखते रहें।

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  8. नई नवेली दुल्हन के मन के भाव
    खुबसुरत रचना

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  9. भावपूर्ण रचना..

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    1. धन्यवाद आदरणीय अमित जी

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  11. खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. धन्यवाद आदरणीय राजेश जी

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