माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी हैं ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब हम भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
***अनुराधा चौहान***
आपकी इस कविता में कुण्डलिया बनती है सम्पादन के चक्कर में हम लिख नहीं पाते देखिए....आपकी कविता में एक कुण्डली बनाए है.... ...... माया माया करते रह गए माया मिली न चैन गले पड़ी है तृष्णाएं लिए हाथ कटारी पूरी करते इनको सब भूले दुनियादारी तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे सादर
कुण्डलिया ऐसी नही होती कुण्डलिया में पहले तुकांत दोहा होता है फिर दोहे के अंतिम पड़ की दूसरे दोहे/रोले में पुनरावृत्ति होती है फिर तीसरे दोहे/ रोले में अक्सर कवि का परिचय /नाम होता है और कुंडलिका का अंतिम शब्द फिर से वही पहला शब्द होता है
उदाहरण
माया माया खुब किये माया मिली न चैन गले पड़ गयी तृष्णाएं भूल गए सुख चैन भूल गये सुख चैन भूल गये दुनियादारी फंस गये तृष्णा भंवर में मन भए संसारी कह योगी कविराय ये जीवन झूठी छाया राम भजो मोरे मनवा त्यागो जल्दी माया
ये लगभग बन गई है माया माया करते रह गए माया मिली न चैन गले पड़ी है ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी पूरी करते इनको सब, हम भूले दुनियादारी तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
आपकी इस कविता में कुण्डलिया बनती है
ReplyDeleteसम्पादन के चक्कर में हम लिख नहीं पाते
देखिए....आपकी कविता में एक कुण्डली बनाए है....
......
माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी है तृष्णाएं लिए हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी बताने के लिए
Deleteकुण्डलिया ऐसी नही होती
Deleteकुण्डलिया में पहले तुकांत दोहा होता है
फिर दोहे के अंतिम पड़ की दूसरे दोहे/रोले में पुनरावृत्ति होती है
फिर तीसरे दोहे/ रोले में अक्सर कवि का परिचय /नाम होता है और कुंडलिका का अंतिम शब्द फिर से वही पहला शब्द होता है
उदाहरण
माया माया खुब किये माया मिली न चैन
गले पड़ गयी तृष्णाएं भूल गए सुख चैन
भूल गये सुख चैन भूल गये दुनियादारी
फंस गये तृष्णा भंवर में मन भए संसारी
कह योगी कविराय ये जीवन झूठी छाया
राम भजो मोरे मनवा त्यागो जल्दी माया
ये दो पंक्ति एक-एक शब्द और माँगती है
ReplyDeleteगले पड़ी है तृष्णाएं लिए हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब भूले दुनियादारी
सादर
जी आभार आपका
Deleteये लगभग बन गई है
ReplyDeleteमाया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी है ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब, हम भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/09/2018 की बुलेटिन, जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी धन्यवाद आदरणीय 🙏
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ReplyDeleteThanks
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeletebahut sundar ji
ReplyDeleteधन्यवाद प्रशांत जी
Deleteसामान्य रचना के रूप में रचना अच्छी है ,पर ये कुण्डलिया छंदक्षनही है ।
ReplyDeleteजी कुसुम जी लिखी तो सामान्य ही थी
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