Followers

Friday, September 21, 2018

माया मिली न चैन

माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी हैं ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब हम भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
***अनुराधा चौहान***

17 comments:

  1. आपकी इस कविता में कुण्डलिया बनती है
    सम्पादन के चक्कर में हम लिख नहीं पाते
    देखिए....आपकी कविता में एक कुण्डली बनाए है....
    ......
    माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
    गले पड़ी है तृष्णाएं लिए हाथ कटारी
    पूरी करते इनको सब भूले दुनियादारी
    तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
    मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
    एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी बताने के लिए

      Delete
    2. कुण्डलिया ऐसी नही होती
      कुण्डलिया में पहले तुकांत दोहा होता है
      फिर दोहे के अंतिम पड़ की दूसरे दोहे/रोले में पुनरावृत्ति होती है
      फिर तीसरे दोहे/ रोले में अक्सर कवि का परिचय /नाम होता है और कुंडलिका का अंतिम शब्द फिर से वही पहला शब्द होता है


      उदाहरण

      माया माया खुब किये माया मिली न चैन
      गले पड़ गयी तृष्णाएं भूल गए सुख चैन
      भूल गये सुख चैन भूल गये दुनियादारी
      फंस गये तृष्णा भंवर में मन भए संसारी
      कह योगी कविराय ये जीवन झूठी छाया
      राम भजो मोरे मनवा त्यागो जल्दी माया

      Delete
  2. ये दो पंक्ति एक-एक शब्द और माँगती है
    गले पड़ी है तृष्णाएं लिए हाथ कटारी
    पूरी करते इनको सब भूले दुनियादारी
    सादर

    ReplyDelete
  3. ये लगभग बन गई है
    माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
    गले पड़ी है ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
    पूरी करते इनको सब, हम भूले दुनियादारी
    तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
    मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
    एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/09/2018 की बुलेटिन, जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद आदरणीय 🙏

      Delete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. धन्यवाद आदरणीय

    ReplyDelete
  7. सामान्य रचना के रूप में रचना अच्छी है ,पर ये कुण्डलिया छंदक्षनही है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी कुसुम जी लिखी तो सामान्य ही थी

      Delete