रोज आ बैठती हूँ
इसी उम्मीद में यहां
तुमने किया था
लौट आने का वादा
दिन निकल रहे
तेरी याद में
लो यह शाम भी
ढल गई तेरे
इंतजार में
रातें कटती मेरी
तेरे ख्वाबों में
कब आओगे
खत लिख दो मितवा
करती हूं आज भी
तेरा इंतजार मितवा
तुम कैसे भूल बैठे
अपना यह वादा
बाटेंगे सुख-दुख
हम आधा-आधा
राह तकते तकते
थक गई है अंखियां
बिखर रही मेरे
ख्वाबो की लड़ियां
नहीं आओगे तो
तुम खत लिख दो
इंतजार खत्म हो
बस अब तो
जिंदगी तुम बिन
वीरान है मितवा
कब आओगे तुम
खत लिख दो मितवा
***अनुराधा चौहान***
इसी उम्मीद में यहां
तुमने किया था
लौट आने का वादा
दिन निकल रहे
तेरी याद में
लो यह शाम भी
ढल गई तेरे
इंतजार में
रातें कटती मेरी
तेरे ख्वाबों में
कब आओगे
खत लिख दो मितवा
करती हूं आज भी
तेरा इंतजार मितवा
तुम कैसे भूल बैठे
अपना यह वादा
बाटेंगे सुख-दुख
हम आधा-आधा
राह तकते तकते
थक गई है अंखियां
बिखर रही मेरे
ख्वाबो की लड़ियां
नहीं आओगे तो
तुम खत लिख दो
इंतजार खत्म हो
बस अब तो
जिंदगी तुम बिन
वीरान है मितवा
कब आओगे तुम
खत लिख दो मितवा
***अनुराधा चौहान***
बहुत लाजवाब रचना 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी
Deleteबहुत सुंदर दिलकश रचना ।
ReplyDeleteवाहः
ReplyDeleteबहुत उम्दा
धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteवाह वाह। बहुत ही सरल सहज सुंदर भावप्रवण रचना। सरल लिखना बहुत कठिन है। सरल कहना बहुत कठिन है। सरलता से कहना और भी कठिन है। नमन आपको।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपने सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए 🙏
Deletebehtareen ji
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय प्रशांत जी
DeleteVery sentimental
ReplyDeleteमज़ा आ गया।
धन्यवाद आदरणीय जफर जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १० सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए 🙏
Deleteपरदेश में बसे मनमीत से आने और आने से पहले यही बात खत के जरिए बताने की मनुहार करती सुंदर रचना ।प्रिय अनुराधा जी बहुत कोमल भाव पिरोए।हार्दिक बधाई । आपने रचना में ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेणू जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है
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