अतिथि देवो भव की
रीत है सदियों पुरानी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमने
यह सीख सदा ही जानी
वो भी क्या दिन थे
जब रिश्तेदारों का
होता आना-जाना था
यादों की पोटली से
निकलता पुरानी
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
वक्त की हो गई बड़ी कमी
और प्रीत बदलते देखी है
अतिथि देवो भव की भी
अब रीत बदलते देखी है
आना-जाना तो लगा रहता
पर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
***अनुराधा चौहान***
रीत है सदियों पुरानी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमने
यह सीख सदा ही जानी
वो भी क्या दिन थे
जब रिश्तेदारों का
होता आना-जाना था
यादों की पोटली से
निकलता पुरानी
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
वक्त की हो गई बड़ी कमी
और प्रीत बदलते देखी है
अतिथि देवो भव की भी
अब रीत बदलते देखी है
आना-जाना तो लगा रहता
पर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
***अनुराधा चौहान***
बहुत सही कहा आपने अनुराधा जी ....सुंदर रचना |
ReplyDeleteधन्यवाद दीपशिखा जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सही और सुंदर सखी सच समय के साथ सब अनुभूतियां भी बदल गई।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteआना-जाना तो लगा रहता
ReplyDeleteपर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचाने, अनुराधा दी।
बहुत बहुत आभार ज्योती जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteबहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह!!!
अतिथि तुम कब आओगे? पर उस से पहले यह बताओ कि तुम हमारे यहाँ से कब जाओगे? कितनी बार हमारे यहाँ और कितनी बार बाहर खाना खाओगे? यह तो बताओ कि हमारे लिए उपहार क्या लाओगे? और हमारे यहाँ से कुछ उठा तो नहीं ले जाओगे?
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर पंक्तियां आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteसब बातें पुरानी हो गयीं आज ... आज अतिथि आये तो दुसरे दिन सोचते हैं सब कब जायेंगे ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत ही यथार्थ परक रचना और गोपेश जी ने रचना के विषय देती टिप्पणी से रचना को और भी रोचक बना दिया | सचमुच वो समय कितना बदल गया तो अतिथियों के सत्कार की वो पुरानी रीत भी क्यों ना बदलती ? आभार |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेनू जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
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