पुष्पों की सुंदर सौगात
करती धरा का श्रृंगार
लाल, गुलाबी,पीले
पुष्प यहां कई रंग के खिलते
लाल पुष्प कुमकुम सी आभा
सबके मन को बहुत लुभाता
पीले पीले पुष्प सुनहरे
सोने सी छटा बिखेरे
सफेद पुष्पों की फैली चादर
जैसे आसमां से उतरा बादल
गाल गुलाबी नवयौवना के
पुष्प गुलाबी कोमल ऐसे
धरती की धानी चूनर भी
सतरंगी पुष्पों से सजी है
करने धरा का यह श्रृंगार
प्रभू की यह अनमोल कृति है
सुंदर सुंदर बाग बगीचे
सब इनकी खुशबू से महके
बने प्रभू के गले का हार
पुष्प बिना अधूरा श्रृंगार
***अनुराधा चौहान***
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 24 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी
Deleteरंग , गंध और उमंग से भरे पुष्प धरा का श्रृंगार और जीवन का आधार है प्रिय अनुराधा बहन | फूलों सी सुंदर सुकोमल रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआपका आभार रेनू जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरा उत्साह बढ़ाती है
Deleteवाह सुमनों से सजी सुमन सी मोहक रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteफूलों के बिना सृष्टि इतनी सुंदर ना होती। सुंदर सुरुचिपूर्ण कविता।
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