मन दर्पण आशा ज्योती
रंग भरें इसमें भावों के मोती
भावनाओं का सागर अपार
कितना सुंदर यह संसार
सबके मन में प्यार बसा है
शब्दों का संसार बसा है
साहित्य के रंगों में रंगी है
मन के दर्पण में इसकी छवि है
यह रचनाएं दिल की धड़कन
इनमें बसा आज और कल
आत्मा से निकले बोल
इनके शब्द बड़े अनमोल
प्रीत की रीत सदा चली आई
हमने भी यह रीत निभाई
हम साथी भावों के सच्चे
छूटे न यह रंग हैं पक्के
मन का दर्पण झूठ न बोले
ख्व़ाबों के नित बने घरोंदे
दिल में जो बसती सूरत है
दर्पण में वही दिखती मूरत है
मन का दर्पण सदा रहे साफ
सबसे रखो प्रेम सद्भाव
***अनुराधा चौहान***
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 01 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteमन से बेहतर दर्पण कोई नहीं हो सकता ... सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteअनुराधा जी, बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमन के दर्पण में जो छवि स्थापित हो जाती है उसे देखा नहीं, बल्कि सिर्फ़ महसूस किया जाता है. रसखान की एक गोपिका दिन-रात कान्हा के ख़याल में खोई रहती है. एक बार वह आँखों पर घूंघट डाले अपने कान्हा के बारे में सोच रही है कि उसकी एक सखी उसे कान्हा के आने की सूचना देती है -
'खोल री घूघट'
लेकिन कान्हा के प्रेम की दीवानी वह गोपिका अपना घूंघट उघाड़ने से इंकार कर देती है -
'खोलो कहाँ? वह मूरत नैनन माहिं बसी है.'
बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए 🙏
Deleteवाह बहुत ही मोहक वर्णन सखी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
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