दिल से इक आवाज़ आई
क्यों ओढ़ ली तूने तन्हाई
क्या मज़ा है चुप-चुप जीने में
कुछ दर्द छुपा क्या सीने में
फिर मन ने भी आवाज़ लगाई
कितनी सुहानी सुबह है आई
क्यों रोकर इसको खोते हो
क्यों नहीं खुल कर जीते हो
सुन कर दिल की आवाज़े
खोले फिर मन के दरवाजे
प्रकृति की मोहक सुंदरता
देख बहने लगा भावों का झरना
सूरज की चमकती किरणों से
जब धरती ने अंगड़ाई ली
मन में उठते विचारों ने फिर
बन कविता अंगड़ाई ली
सुन कर प्रकृति की आवाज़ें
कहीं कोयल कूके,हवा चले
हिलते पेड़ों की सरगम बहे
कल-कल करती नदियाँ बहें
अब तक खुद में खोया हुआ
इन आवाजों से दूर रहा
ख़ामोश बहारें सुंदर नजारे
ख़ामोशी से आवाज़ लगाते
कितना कुछ कहती यह घाटियां
ऊंँची सुंदर पर्वतों की चोटियांँ
सुनना है अगर इनकी आवाज़ें
मन में सुंदर एहसास चाहिए
शोर-शराबा,हल्ला-गुल्ला
यह कान फोड़ती आवाज़ें
इन सब से तो अच्छी होतीं
ख़ामोश प्रकृति की आवाज़ें
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteदिल की आवाज़....
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/11/2018 की बुलेटिन, " सूचना - ब्लॉग बुलेटिन पर अवलोकन 2018 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteपन्त जी की तरह 'नौका विहार' का आनंद अब कौन ले पाता है?
ReplyDeleteतरक्की के शोर में अमन की बांसुरी किसे सुनाई देती है?
जी सही कहा आपने बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteखामोश प्राकृति का गुंजन सीधे दिल में उतरता है ...
ReplyDeleteपर इसे दिल से मज्सूस करता होता है ... भावपूर्ण रचना ...
प्रकृति सौन्दर्य को शब्दों में ढाल जिंदगी में ढालती सुरम्य रचना सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteप्रकृति की सुन्दरता का एहसास इस आपाधापी भरी जिन्दगी में .....फुरसत ही किसे है..बहुत ही सुन्दर मनभावनी रचना...
ReplyDeleteवाह!!!