वक्त की धारा में
धूमिल होते संस्कार
नहीं दिखाई देता कहीं
पहले जैसा
प्यार और सम्मान
रिश्तों में भी मचा रहता
आपसी द्वंद
सब इसी कोशिश में लगे
कि हम नहीं किसी से कम
अब तो आया
इंग्लिश का ज़माना
हिंदी बन गई
पुराना ज़माना
हाय,हैलो कर होता है
अब बड़ों का सम्मान
कौन चरणस्पर्श कर
रीढ़ की हड्डी
को करे परेशान
भूल गए इस संस्कार को
बड़ों के आदर-सत्कार को
आशीर्वाद में उनसे
मिलने वाले प्यार को
अपनी सभ्यता संस्कृति का
घोंट कर गला
कौनसा संस्कार अपने
बच्चों को दोगे तुम भला
ऊपरी चकाचौंध तो कुछ
दिन रंग दिखाती है
अगर संस्कार अच्छे हैं
खूबसूरती दिन पर दिन
निखरती जाती है
इसलिए हमेशा करो बड़ों
का सम्मान क्योंकि
उनसे मिलता है
हमें उत्तम ज्ञान
***अनुराधा चौहान***
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसही कहा आपने अनुराधा जी ,हम अपने संस्कार खोते जा रहे है ,बहुत सुन्दर रचना ,स्नेह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteसंस्कार देने में भलाई है ... किसी समय ख़ुद के ही काम आते हैं ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत अच्छी रचना 👌
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteसार्थक आदर्श लिये सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
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