इच्छाएँ दम तोड़ने लगतीं हैं
आशाएंँ मुख मोड़ने लगतीं हैं
वक़्त भी भागता रहता है
अपनी तेज रफ्तार से
हमें बहुत कुछ देकर
हमसे बहुत कुछ लेकर
खो जाए ज़िंदगी में
जब कोई सदा के लिए
तब अवसाद से घिर जाता मन
कुछ न भाता है रात -दिन
फिर अंधेरा आंँखों को भाता है
बसंत बिल्कुल न सुहाता है
तन्हाइयांँ रास आतीं हैं
चाँदनी आंँखों में चुभती है
सिर्फ यादें उनकी दिन-रात
साथ नहीं छोड़ती
अंदर ही अंदर दिल तोड़ती
मन भी कहीं शून्य में
खोता-सा नजर आता है
अंदर कुछ टूटता नजर आता है
निकलना जितना भी चाहें
यादों के भंँवर में फंसते जाते हैं
सब कुछ भूल जाएं हम मगर
उन्हें हम भूल नहीं पाते
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर...... आदरणीया।
ReplyDeleteअवसाद का सुन्दर सृजन सखी ,सही कहा आप ने मन अवसाद का अपनी और खींचता, सुकून की चाह में मनु अपना अस्तित्व गवाता जा रहा , अवसाद दीमक की तरह मनु मन को आहत करता रहता, आज हमारे एडल्ट सबसे ज्यादा अवसाद ग्रथ.... बहुत सुन्दर आदरणीया
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteअवसाद की स्थिति को बख़ूबी लिखा है आपने ... ऐसे हालात को लिखने कि अच्छा प्रयास है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद निधि जी
Deleteआदरणीया आपकी रचना पढ़ी बहुत ही पसंद आई परन्तु कुछ आवश्यक त्रुटि सुधार करें तो बेहतर हो जैसे
ReplyDeleteवक्त को वक़्त करें !
यदि आप नुक़्ता सम्बन्धी त्रुटियों को ध्यान में रखें तो बेहतर है।
रात-दिन ऐसे लिखें !
आंखों को आँखों लिखें !
आपने कई स्थान पर चन्द्रबिन्दु नहीं लगाए कृपया इसका अवश्य ध्यान दें ! चन्द्रबिन्दु का स्थान ( . ) डॉट कदापि नहीं ले सकता।
शुन्य को शून्य लिखें !
खोता सा को कुछ इस तरह लिखें , खोता-सा
अंत में यही कहूँगा कि वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों की अधिकता है जिसे आप जल्द दूर करें ! आलोचना हेतु क्षमा प्रार्थी। सादर
जी मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुन्दर अनुराधा जी.
ReplyDeleteअवसाद, कुंठा, निराशा आदि तो सिक्के का एक ही पहलू दिखाते हैं. इस सिक्के के दूसरी ओर आशा है, इच्छा-शक्ति है और आत्म-विश्वास है. फिर अवसाद को आनंद में बदलने में या पतझड़ को वसंत में बदलने में क्या देर लगनी है?
सही कहा आपने आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर........ सादर स्नेह सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteअवसाद पर बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुधा जी
Deleteबहुत सार्थक कथ्य! बधाई!!!!
ReplyDeleteबेहद आभार आदरणीय
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