शाम के आगोश में
जाकर सो गया दिनकर
ढल रहा है दिन
घर लौट रहें हैं विहंग
सजनी भी संदेश देने
टटोलती चाँद का मन
झाँक उठा चाँद गगन से
चाँदनी लहराकर आँचल
उतर आई है ज़मीं पर
टाँक दिए कुदरत ने तारे
आसमां के चूनर में
चाँद बन बिंदियाँ
चमक उठा अंबर के माथे
बुजुर्गो की कही हुई
याद आ गई कहानी
जो सुनी थी बचपन में
चाँद पर चरखा चलाती
बैठी रहती है बुढ़िया नानी
***अनुराधा चौहान***
जाकर सो गया दिनकर
ढल रहा है दिन
घर लौट रहें हैं विहंग
सजनी भी संदेश देने
टटोलती चाँद का मन
झाँक उठा चाँद गगन से
चाँदनी लहराकर आँचल
उतर आई है ज़मीं पर
टाँक दिए कुदरत ने तारे
आसमां के चूनर में
चाँद बन बिंदियाँ
चमक उठा अंबर के माथे
बुजुर्गो की कही हुई
याद आ गई कहानी
जो सुनी थी बचपन में
चाँद पर चरखा चलाती
बैठी रहती है बुढ़िया नानी
***अनुराधा चौहान***
सुंदर प्रस्तुति सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार दीपशिखा जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत खूब.... आदरणीया
ReplyDeleteसुंदर रचना
सुन्दर!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार श्वेता जी
Deleteबहुत ही भावपूर्ण लघु रचना प्रिय अनुराधा जी | नानी के चाँद पर चरखा कातने की कहानी कितनी मनभावन थी बचपन में | पर सदैब कहाँ कुछ रहता है ? सस्नेह --
ReplyDeleteसत्य कहा आपने समय की धारा में सब किस्से कहानियां बहते चले गए अब तो यादें ही बाकी है
Deleteबहुत बहुत आभार सखी
बहुत सुंदर रचना ,सादर स्नेह सखी
ReplyDeleteबचपन की कहानियों की यादें ....बहुत ही सुन्दर सृजन....
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी
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