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Tuesday, January 8, 2019

सब कलयुग की लीला

कभी मिले थे दो दिल
बने एक-दूजे का आसरा
मिलकर दोनों साथ चले
जीवन की मुश्किल में
एक-दूजे के साथ खड़े
धीरे-धीरे परिवार बना
परिवार भी साथ चला
बीतने लगा वक्त तेजी से
बदलने लगे हालात भी
सबकी जरूरत पूरी करते
अपने सब सपने भूल गए
जरूरत पूरी होते ही
संगी,साथी दूर हुए
आसरा देने का आया समय
बच्चों ने भी छोड़ा साथ
रह गए वहीं खड़े अकेले
सफ़र जहां से शुरू किया
कलयुग का सच यही है
बुढ़ापा है आज बेआसरा
बच्चों का नहीं कोई सहारा
पाल-पोस कर बड़ा करो
काबिल बनते उड़ जाते
अपनी दुनिया अलग बनाते
माँ-बाप के लिए जगह नहीं
दोस्तों में रुतबा दिखाते
सबके बीच भले बन जाते
यह सब कलयुग की लीला
जिसने संस्कारों को छीना
इसलिए समय रहते काम करो
बुढ़ापे का इंतजाम करो
जब अपनी औलाद
साथ छोड़ जाती है
तो दूजे से क्या फरियाद करो
दे सको दूजों का आसरा
ऐसा कुछ सब काम करो
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

18 comments:

  1. प्यारी रचना, ख़ूब दर्द संजो कर रखा है आपने !
    अपनी दुनिया अलग बनाते
    माँ-बाप के लिए जगह नहीं

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  2. बेहतरीन ,यथार्थ जीवन का सत्य ,
    कलियुग का आज यही सच है
    बुढापा है आज बेसहारा ।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/01/2019 की बुलेटिन, " अख़बार की विशेषता - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार शिवम् जी

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  4. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 12 जनवरी 2019को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार यशोदा जी

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  5. बहुत बहुत आभार सखी

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  6. बहुत सुंदर....... रचना अनुराधा जी यथार्थ ,इसी विषय पर मैंने भी कुछ लिखा है" सेकेण्ड इंनिग होम "समय मिले तो पढियेगा।

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    1. जी अवश्य कामिनी जी आपका बहुत बहुत आभार

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  7. वाह!!सख ,यथार्थ का चित्रण बडी खूबसूरती के साथ किया है आपने ।

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  8. आपने अपनी रचना में एक एक शब्द को बडे ही गहराई के साथ लिखा है, स्थितिओ का अवलोकन सही ढ़ंग से किया है ।

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  9. मर्मस्पर्शी सार्थक रचना आज के समय का आईना दिखाती संवेदनशील रचना।
    वाह!

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  10. क्या खूब कहा आपने...यथार्थ....
    बहुत ही सुंदर रचना

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