कभी मिले थे दो दिल
बने एक-दूजे का आसरा
मिलकर दोनों साथ चले
जीवन की मुश्किल में
एक-दूजे के साथ खड़े
धीरे-धीरे परिवार बना
परिवार भी साथ चला
बीतने लगा वक्त तेजी से
बदलने लगे हालात भी
सबकी जरूरत पूरी करते
अपने सब सपने भूल गए
जरूरत पूरी होते ही
संगी,साथी दूर हुए
आसरा देने का आया समय
बच्चों ने भी छोड़ा साथ
रह गए वहीं खड़े अकेले
सफ़र जहां से शुरू किया
कलयुग का सच यही है
बुढ़ापा है आज बेआसरा
बच्चों का नहीं कोई सहारा
पाल-पोस कर बड़ा करो
काबिल बनते उड़ जाते
अपनी दुनिया अलग बनाते
माँ-बाप के लिए जगह नहीं
दोस्तों में रुतबा दिखाते
सबके बीच भले बन जाते
यह सब कलयुग की लीला
जिसने संस्कारों को छीना
इसलिए समय रहते काम करो
बुढ़ापे का इंतजाम करो
जब अपनी औलाद
साथ छोड़ जाती है
तो दूजे से क्या फरियाद करो
दे सको दूजों का आसरा
ऐसा कुछ सब काम करो
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
प्यारी रचना, ख़ूब दर्द संजो कर रखा है आपने !
ReplyDeleteअपनी दुनिया अलग बनाते
माँ-बाप के लिए जगह नहीं
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन ,यथार्थ जीवन का सत्य ,
ReplyDeleteकलियुग का आज यही सच है
बुढापा है आज बेसहारा ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/01/2019 की बुलेटिन, " अख़बार की विशेषता - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम् जी
Deleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 12 जनवरी 2019को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी
Deleteबहुत बहुत आभार सखी
ReplyDeleteबहुत सुंदर....... रचना अनुराधा जी यथार्थ ,इसी विषय पर मैंने भी कुछ लिखा है" सेकेण्ड इंनिग होम "समय मिले तो पढियेगा।
ReplyDeleteजी अवश्य कामिनी जी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteवाह!!सख ,यथार्थ का चित्रण बडी खूबसूरती के साथ किया है आपने ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteआपने अपनी रचना में एक एक शब्द को बडे ही गहराई के साथ लिखा है, स्थितिओ का अवलोकन सही ढ़ंग से किया है ।
ReplyDeleteबेहद आभार आपका
Deleteमर्मस्पर्शी सार्थक रचना आज के समय का आईना दिखाती संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteवाह!
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteक्या खूब कहा आपने...यथार्थ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
धन्यवाद आदरणीय
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