सांझ ढलने लगी
चाँद मुस्कुराने लगा
चाँदनी भी हंँस कर
आँगन में गई उतर
ऐ रात जरा ठहर के चल
अभी तो बाकी है प्रहर
थोड़ी देर रुक सही
जरा दिल को करार आने दे
तारों को जगमगाने दे
जाग उठे सुखद अहसास
चली फागुनी बयार
तन-मन में मची सिहरन
ऐ बहार थोड़ा रुक जरा
अभी बसंत गया नहीं
प्रिय को पास आने दे
जरा दिल को करार आने दे
बिखरने लगे ओस के मोती
यहाँ फूलों पर निखर-निखर
ऐ अंधेरे मुझे यूँ न सता
थोड़ी देर तो जरा ठहर
चिराग प्रेम के जलने दे
जरा दिल को करार आने दे
***अनुराधा चौहान***
कोमल मन भावन, श्रृंगार रस और भीनी सी फाल्गुनी रंग लिये सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबेहद आभार सखी
Deleteबहुत ही सुन्दर मन भावन रचना सखी
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार सखी
Deleteबहुत बढ़िया रचना,अनुराधा दी।
ReplyDeleteसहृदय आभार ज्योती बहन
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