अश्रु नीर बन बहने लगे
विरह वेदना सही न जाए
इतने बेपरवाह तुम तो न थे
जो पल भर मेरी याद न आए
चटक-चटककर खिली थी कलियाँ
मौसम मस्त बहारों का था
मैं पतझड़-सा जीवन लेकर
ताक रही थी सूनी गलियां
फूल पलाश के झड़ गए सारे
बीते गए दिन मधुमास के
गर्म हवाएं तन को जलाती
बैठी अकेली मैं अश्रु बहाती
शरद भी बीता बसंत भी बीता
विरह की अग्नि बरसने लगी
नयनों से अश्कों की बारिश
मैं पल-पल तेरी बाट निहारूँ
लौटकर आना देर न करना
मन का मेरे विश्वास न टूटे
नयना मेरे तेरी याद में भींगे
कहीं सब्र का मेरे बांध न टूटे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
वाह ....
ReplyDeleteअश्रु नीर बन बहने लगे
विरह वेदना सही न जाए
इतने बेपरवाह तुम तो न थे
जो पल भर मेरी याद न आए
...बेहतरीन सृजन
सब्र टूटेगा तो सैलाब तो बहेगा ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति मनोभाव की ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteसंवेदना और भावनाओं से परिपूर्ण कविता।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteलौटकर आना देर न करना
ReplyDeleteमन का मेरे विश्वास न टूटे
नयना मेरे तेरी याद में भींगे
कहीं सब्र का मेरे बांध न टूटे।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मन को छूती।
सहृदय आभार सखी
Deleteफूल पलाश के झड़ गए सारे
ReplyDeleteबीते गए दिन मधुमास के
गर्म हवाएं तन को जलाती
बैठी अकेली मैं अश्रु बहाती....वाह !
सहृदय आभार सखी
Deleteअनुरागी मन व्याकुलता को दर्शाती सुंदर रचना और अंतिम पंक्तियों की भावुक मनुहार के क्या कहने! _-- लौटकर आना देर ना करना-- मन का मेरे विश्वास ना टूटे--तो बहुत ही मार्मिक हैं। शुभकामनाएं प्रिय अनुराधा जी। मेरे रोज़ वाले खाते से मोबाइल से टिप्पनी नहीं हो पाती अतः इसी मेल से लिख रही हूं। स स्नेह।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर... लाजवाब रचना?
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteइतने बेपरवाह तुम तो न थे
ReplyDeleteजो पल भर मेरी याद न आए
....मन को छूती बेहतरीन
सहृदय आभार आदरणीय
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
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