जीवन के रंगमंच पर
देखे हैं अजब तमाशे
पैसे वाले नींद को तरसे
गरीब लेते हैं खर्राटें
जेब भरी है दौलत से
सुकून चेहरे से गायब है
जीवन के इस मंच का
यह कैसा अजीब नायक है
थाली में भोजन हैं छप्पन
किसी में नमक कम है
तो कहीं कम लगे मक्खन
संतुष्ट नहीं यह किसी बात से
जलते एक-दूजे के आराम से
ग़रीब को देख घिनियाते
जोकर-सा उनको नचाते
ग़रीब पर जब अत्याचार करते
फ़ख्र बड़ा इस बात पर करते
बनाकर उनको यह कठपुतली
इंसानियत की हदें पार करते
बलवान बड़े यह नायक
इंसानियत को करते घायल
यह रंगमंच बड़ा पेचीदा है
मरता वही जो सीधा है
सदियों से यह रीत चली आई
निर्बल पर हावी यह दुनिया सारी
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
क्या बात है बहुत सुन्दर सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteजीवन के रंगमंच पर देखे हैं अजब तमाशे
ReplyDeleteपैसे वाले नींद को तरसे गरीब लेते हैं खराटें
अजीब अनुभूति व प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति सखी ।
ReplyDeleteये जिंदगी भी तो तमाशा है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह .... खूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
Delete