सुनहरे अश्वो पर सवार हो
सिंदूरी गलीचे पर चलके
सूर्य आया रश्मियों के साथ
जीवन में उजाला भरने
बिखरी हुई रश्मियों ने
छुआ ज्यों ही कलियों को
उतार ओस का घूँघट
हँसी कलियाँ तितलियों को
भोर का सुखद अहसास लिए
चहक उठा जीवन भी
निकल पड़े सब घर से
ज़िंदगी जीने अपनी-अपनी
बिछाए सुनहरा गलीचा
देते दिनकर जीवन की धूप
शाम को समेटकर उजाला
क्षितिज के छोर पर गया छुप
सिंदूरी गलीचे पर चलके
सूर्य आया रश्मियों के साथ
जीवन में उजाला भरने
बिखरी हुई रश्मियों ने
छुआ ज्यों ही कलियों को
उतार ओस का घूँघट
हँसी कलियाँ तितलियों को
भोर का सुखद अहसास लिए
चहक उठा जीवन भी
निकल पड़े सब घर से
ज़िंदगी जीने अपनी-अपनी
बिछाए सुनहरा गलीचा
देते दिनकर जीवन की धूप
शाम को समेटकर उजाला
क्षितिज के छोर पर गया छुप
बिछ गई अँधेरे की चादर
रात आई ख्व़ाबों को लेकर
चाँद मुस्कुराया आसमान में
तारों का गलीचा बिछाकर
चमचमाती हुई चाँदनी
अँधेरे से रातभर लड़ती
सुबह सवेरे थककर चूर
चाँद से लिपट सो जाती
सूर्य उदय की पुनः तैयारी
कर रथ पे सवार हो आता
इस दिन-रात के फेर में
ज़िंदगी चलती अपनी धुन में
समय का चक्र भी चलता रहता
रहस्यमयी गलीचों से गुजर
ज़िंदगी भी चलती रहती है
इन गलीचोें पर कुछ खोजती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बेहतरीन संयोजन सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसहृदय आभार रितु जी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-05-19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह!!सखी ,बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति,मैम....
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी
Deleteभावनाओं की भावपूर्ण अभिव्यक्ति । सराहनीय प्रस्तुति । आभार ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन रचना सखी 👌
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार प्रिय सखी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह.. बहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteसहृदय आभार पम्मी जी
Deleteसमय का चक्र भी चलता रहता
ReplyDeleteरहस्यमयी गलीचों से गुजर
ज़िंदगी भी चलती रहती है
इन गलीचोें पर कुछ खोजती
बेहतरीन रचना.... सखी
सहृदय आभार सखी
Deleteवाह बहुत सुन्दर प्रकृति के सुंदर तिलिस्मी गलीचे।
ReplyDeleteअप्रतिम सुंदर सखी ।
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से आभार प्रिय सखी
Deleteसमय का चक्र भी चलता रहता
ReplyDeleteरहस्यमयी गलीचों से गुजर
ज़िंदगी भी चलती रहती है
इन गलीचोें पर कुछ खोजती
सृष्टि पर नजर दौडाते हुए समय के चक्कर को बहुत ही सार्थकता से लिख दिया आपने प्रिय अनुराधा जी | गलीचे के बहाने से एक और सुंदर सृजन | सस्नेह
प्रिय रेणु जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरी मेहनत सफल कर देती है सस्नेह आभार सखी
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