प्रदूषण बना दानव
लील रहा है शुद्ध हवा
घोल रहा उसमें जहर
नदियों की निर्मल धारा छीन
धकेल रहा दलदल की ओर
प्रदूषण के भय से हो रहा
पर्यावरण असंतुलित
ओजोन परत छलनी हो रही
बदले हैं मौसम ने मिज़ाज
प्रदूषण के दानव से अब
काँप उठी है धरा
ग्लेशियर पिघलते हुए
अपना अस्तित्व खो रहे
कट रहे हैं जंगल
पक्षी बनते जा रहे इतिहास
प्रदूषण के दानव से
कब तक बचने का करोगे प्रयास
धकेल रहे हैं हम खुद
खुद इस महादानव की और
इसकी गिरफ्त में आकर
भूलें सब दुनियादारी
सुख-सुविधाओं के नाम पर
खुद बुलाई अपनी बरबादी
अब शायद ही कभी
आएगा शुद्ध हवाओं का दौर
और कभी पहले जैसी सुहानी भोर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
सामायिक भयावह सत्य उजागर करती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteसत्य 👏👏🌺🙏
ReplyDeleteजी आभार
Deleteउम्मदा रचना
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteआयेगा शुद्ध हवाओं का दौर
ReplyDeleteऔर कभी पहले जैसी सुहानी भोर
सत्य होंगे वचन तुम्हारे सखी बहुत खूब
धन्यवाद ऋतु जी
Deleteसहृदय आभार सखी
ReplyDeleteबहुत खूब सखी !! प्रदूषण नामक दानव से मिलकर लडना होगा ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार सखी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुंदर रचना अनुराधा बहन। बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रिय सुजाता बहन
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