काश वो लम्हा न जिया होता
जिस लम्हे में साथ छूटा था तेरा
काश वो रात न आई होती
तो मेरी ज़िंदगी से तेरी विदाई न होती
काश वो सफ़र न तय किया होता
जिसमें तुमसे दूर जाना लिखा था
यह "काश,अगर,यदि" ने साथ छोड़ा होता
तो शायद इस दर्द से बाहर निकल पाते
पर काश ऐसा हो सकता
तो इन दर्द भरी यादों को भूलना आसान होता
जेठ दुपहरी-सी तपती तेरी यादें
विरह की आग में मन को जलाती
काश तुम गए न होते तो
देखते कुछ नहीं बदला सब-कुछ वही है
अगर कुछ कमी है तो वो तेरी कमी है
काश मान जाते तुम सबका कहना
मगर तुम को जिद्द थी जाने की कैसी
एकबार भी न
सोचा जाने से पहले
उस लम्हे को रहेंगे सदा हम कोसते
काश रोक पाते तुमको पर मजबूर थे हम
किस्मत के फ़ैसले से नाखुश थे हम
काश टल जाती मौत आने से पहले
तो आज़ ज़िंदगी में तेरी कमी न खलती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
बेहद मार्मिक सृजन
ReplyDeleteसोचती हूँ अक्सर तन्हाई में
काश वो लम्हा न जिया होता
जिस लम्हे में साथ छूटा था तेरा
🙏🙏🙏
धन्यवाद रवीन्द्र जी
Deleteबेहतरीन सृजन ,सखी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01 -06-2019) को "तम्बाकू दो छोड़" (चर्चा अंक- 3353) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बेहतरीन ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार पल्लवी जी
Deleteउफ मर्मांतक पीड़ा शब्द शब्द में ।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना।
सस्नेह आभार सखी
Deleteउफ्फ.. ये बिछोह. इससे बड़ा दर्द कुछ नहीं. 🙏 🙏 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
Deleteबहुत सुंदर मार्मिक रचना
ReplyDeleteसहृदय आभार ऋतु जी
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