दिल है कि मानता नहीं
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
सहेजता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
नीले अम्बर पर उड़ता
आशा की डोली में बैठकर
बीते लम्हों को याद में
मन ही मन बिसूरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख प्रिय का
चुपके-चुपके मुस्कुराने लगता
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
नवजीवन के सपने बुनता
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
वाह वाह क्या बात है दिल है कि मानता नही।
ReplyDeleteसच सखी दिल पर किसका इख्तियार ।
उउम्दा सृजन।
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति 🙏
धन्यवाद रवीन्द्र जी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23 -06-2019) को "आप अच्छे हो" (चर्चा अंक- 3375) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी
Deleteअनुराधा दी, ये दिल ही तो हैं जो किसी की सुनता ही नहीं। बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसहृदय आभार ज्योति बहन
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteदिल है कि मानता ही नहीं
ReplyDeleteअरमानों की पालकी में बैठ
नवजीवन के सपने बुनता
बहुत ही सुंदर रचना... सखी
सपने बुनना ही तो जीवन है ... ये न हों तो कैसा जीवन ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteअरमानों की पालकी में झूलते मन के भावभीने सपनों की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
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