जब भी देखूँ अपना मुखड़ा
छवि देखूँ में श्याम की
मनमंदिर में तुम्ही बसे हो
हुई दीवानी तेरे नाम की।
कानों में हरपल गूँज रहे
सखियों के तीखे ताने
मैं तो भूली सुध-बुध मेरी
सपनों के बुनती बाने।
यमुना तट पे बैठ निहारूँ
छवि सुंदर घनश्याम की
सपनों के बुनती बाने।
यमुना तट पे बैठ निहारूँ
छवि सुंदर घनश्याम की
बंशीवट पे रास रचाऊँ
बेला हो सुबह शाम की।
बेला हो सुबह शाम की।
निंदिया बैरन सोने न देती
मधुवन सूना सा लगता
बिन तेरे बंशीवट सूना
समय तीव्र गति से भगता।
बिन तेरे बंशीवट सूना
समय तीव्र गति से भगता।
श्याम के रंग में रंगी हूँ ऐसे
जित देखूँ दिखे श्याम
सुन ललिता एक बात बता
कहाँ मिलेगा आठो याम।
कोई कहे राधा बावरी
इत उत पागल सी दौड़े
मुरलीधर ब्रज छोड़ गए
हम पत्थर से सिर फोड़े।
कहाँ मिलेगा आठो याम।
कोई कहे राधा बावरी
इत उत पागल सी दौड़े
मुरलीधर ब्रज छोड़ गए
हम पत्थर से सिर फोड़े।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बेहद सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुदर भाव व सार
ReplyDeleteजी आभार मनीषा जी
Delete