सिलवटें ही सिलवटें हैं
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती
ज़िंदगी को झिंझोड़ती है
फिर सलवटों से भरकर
अस्त-व्यस्त ज़िंदगी फिर
ग़म को परे झटकती
आँसुओं में भीगती
फिर आस में सूखती
फीके पड़ते रंगों से
अपना दर्द दिखाती
जिम्मेदारी के बोझ तले
दबती और सिकुड़ती
घिस-घिस के महीन हो
मुश्किलों से लड़कर
अंततः झर से झर जाती
फिर सीधी-सपाट होकर पड़ी
बिना किसी हलचल
बिना कोई झंझट के
सारी परेशानियों से मुक्ति पा जाती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
व्वाहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन..
सार..
धन्यवाद आदरणीय
Deleteव्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर...
जी आभार
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 31 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार पम्मी जी
Deleteबहुत सुंदर, तल्खी है पर सार्थक सी रचना ।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteबेहतरीन सृजन बहुत ही सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteजिंदगी की हकीकत बयाँ करती भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजिन्दगी का बस यही फलसफा...
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत ही लाजवाब सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteसलवटों की कहानी ... कलम की जुबानी ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteअदभुत और अनुपम प्रस्तुति है आपकी
ReplyDelete