अपने अहम के शिकार हुए
अब सबसे अलग-थलग बैठे
अहंकारी व्यक्ति का जीवन
बस अकेलेपन में ही बीते है
जब तक रहता माल जेब में
चापलूस कई मिल जाते हैं
पूरे हो जाते हर सपने
बस अपने ही खो जाते हैं
तिनका-तिनका जोड़ा था जो
जिस दिन मिट्टी में मिल जाता है
मुश्किल घड़ी में गले लगाने
अपनों का हाथ आगे आता है
पल दो पल के यह साथी
पल दो पल ही साथ निभाएंगे
करो शिकार खुद अहम का अपने
शिकारी बाहर से न आएंगे
भाई-बहन और बन्धु सखा से
मत तोड़ना नेह के धागे
बहुत बड़ी होती है ज़िंदगी
क्यों जीवन के सच से भागे
***अनुराधा चौहान***
वाह सखी बहुत सुंदर बात कही आपने रचना के माध्यम से ।
ReplyDeleteसच रिश्तों को सहेजो ।
हार्दिक आभार प्रिय सखी
Deleteसत्य लेखन ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर सृजन सखी👌)
ReplyDeleteगौण हो रहा है विनम्रता का भाव,अहम कि कर रहे सब सवारी
नहीं रिश्तों की फ़िकर नहीं अपनों |
सादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteपर कई दफ़ा ख़ून के तथाकथित भाई-बहन या भाई-भाई के रिश्ते को भी मात दे जाते हैं , कुछ समानुभूति वाले रिश्ते, बस यूँ ही ...
ReplyDeleteवैसे प्रथमदृष्टया लौकिक दुनिया की कहानी कहती अच्छी रचना ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन रचना अनुराधा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता।
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