दर्द चीख कर मौन हो गया,
हृदय हो गया बेचारा।
दर-बदर की ठोकर खाता,
फिरता है मारा-मारा।
निशब्द है भंवरों की गुँजन,
दर्द तड़पें मन के अंदर।
मुरझाए पौधे पे फूल,
चुभते हैं हृदय में शूल।
जाने अब कभी चमकेगा,
मेरी भाग्य का सितारा।
दर्द चीख कर मौन हो गया,
हृदय हो गया बेचारा।
फागुन के रंग हैं फीके,
बाग में कोयल न कूके।
अमुवा की डाल पे झूले ,
बिन तेरे अब हैं रीते।
आँखों से सूखे अब आँसू,
हृदय तड़पता आवारा।
दर्द चीख कर मौन हो गया,
हृदय हो गया बेचारा।
पुरवाई अब हौले-हौले,
यादों के देती झोंके।
बैठ कब से खोल झरोखे,
शायद चंदा कुछ बोले।
पीपल पात शोर कर रहे,
जैसे कोई बंजारा।
दर्द चीख कर मौन हो गया,
हृदय हो गया बेचारा।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से पाओ
बहुत खूब ...
ReplyDeleteमन के दर्द को उभारा है इस रचना में ... बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह अनुपम सृजन!
ReplyDeleteबहुत सुंदर विरह रचना सखी दर्द से ओत-प्रोत।
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. मन्त्रमुग्ध करती अत्यंत सुन्दर रचना अनुराधा जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 27 नवंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार पम्मी जी
Deleteलाजवाब, बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी
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