(1)
वेणी
महकी वेणी मोगरा,जूड़े सजती आज।
शरमाती गोरी चली,पायल देती साज।
पायल देती साज,पहन के कँगना हाथों।
भाँवर पड़ती आज,रही ले फेरे सातों।
कहती अनु सुन आज,खुशी से दुल्हन चहकी ।
लाली मुख पे लाल,लटों में वेणी महकी।
(2)
कुमकुम
गोरी बैठी पालकी,चली पिया के देस।
आँखों में कजरा लगा,पहने चूनर वेस।
पहने चूनर वेस,माँग का चमका टीका,
गजरा महका बाल,लगाए कुमकुम टीका।
छोटी थी कल देख,लली थी सुनती लोरी
चलदी वो ससुराल,विदा होकर के गोरी।
(3)
काजल
चूड़ी से बिँदिया कहे,तू क्यों देती साज।
तेरी खन खन में बसे, नारी मन का राज।
नारी मन का राज।लगाती काजल बिँदिया।
सजती जब ये नार,चुराती हैं यह निँदिया।
कहती अनु सुन आज,बनाओ हलवा पूड़ी।
साजन आए द्वार, खनक-खनकें है चूड़ी।
(4)
गजरा
महके बालों में लगे,गजरा जूही आज।
झुमके कानों में सजे,कँगना चूड़ी साज।
कँगना चूड़ी साज,पहनती चूनर सारी।
कर सोलह श्रृंगार,लग रही सुंदर नारी।
कहती अनु यह देख,खुशी से सखियाँ चहके।
लटका लट में आज,जुही का गजरा महके।
(5)
पायल
छनकी पायल पाँव में,देखे छुपके मीत।
शरमाती दुलहन चली,सजना गाए गीत।
सजना गाए गीत,देख दुलहन भरमाती।
होंठों पे मुसकान, झुका नयना शरमाती।
कहती अनु यह देख,सखी की चूड़ी खनकी।
चलदी साजन साथ,छनक छन पायल छनकी।
शरमाती दुलहन चली,सजना गाए गीत।
सजना गाए गीत,देख दुलहन भरमाती।
होंठों पे मुसकान, झुका नयना शरमाती।
कहती अनु यह देख,सखी की चूड़ी खनकी।
चलदी साजन साथ,छनक छन पायल छनकी।
(6)
कंगन
झुमका कंगन साथ में ,छेड़े ऐसा राग।
आँगन में गोरी नचे,खेले साजन फाग।
खेले साजन फाग,चली देखो बलखाती।
रंगों की बरसात,सजन से नेह दिखाती।
कहती अनु यह देख,लगा खुशियों का ठुमका।
नाचे गोरी आज,पहन के कंगन झुमका।
***अनुराधा चौहान***
झुमका कंगन साथ में ,छेड़े ऐसा राग।
आँगन में गोरी नचे,खेले साजन फाग।
खेले साजन फाग,चली देखो बलखाती।
रंगों की बरसात,सजन से नेह दिखाती।
कहती अनु यह देख,लगा खुशियों का ठुमका।
नाचे गोरी आज,पहन के कंगन झुमका।
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत सुंदर लाज़वाब शानदार कुंडलियाँ अनुराधा जी। साहित्य की लुप्तप्राय विधा में सृजन पढ़ना सुखदायी है। बधाई बहुत अच्छा लिखी हैं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 19 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
1616...मत जलाओ सरकारी या निजी सम्पत्तियाँ
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!!सखी ,बेहतरीन कुंडलियां 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteसुंदर सृजन सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह अनुराधा जी , कुंडलियाँ विधा आज विलुप्त होती जा रही है \ श्रृंगार रस से सराबोर इन रचनाओं का क्या कहना | बहुत अच्छा लिखा आपने | सस्नेह
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteकमल की कुण्डलियाँ ...
ReplyDeleteमज़ा आया पढ़ के ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबेहतरीन कुंडलियां
ReplyDeleteहार्दिक आभार संजय जी
Deleteबहुत सुन्दर श्रृंगार-परक कुण्डलियाँ, अनुराधा जी !
ReplyDeleteछठी कुण्डली का अंतिम शब्द, इसके पहले शब्द की भांति - 'कंगन' ही होना चाहिए था.
हार्दिक आभार आदरणीय यह गलत कुण्डली पोस्ट हो गई थी। सुधार कर दिया है 🙏
Deleteवाह ! अब तो इस कुंडली में चार चाँद लग गए.
Deleteऐसा झुमका कि बरबस ही ठुमका लगाने का मन करने लगे.
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत सुंदर सखी ।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति।
कुण्डलियाँ छंद की ।
वाह!
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर कुंडलियाँ अनु जी 🌹🌹🌹
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुधा जी
Deleteवाहः वाहः उम्दा
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