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Monday, December 16, 2019

टूटे पँखों को लेकर

टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

टूट के बिखरे सपने जो,
इस दिल पे आघात लगा।
 बनके साथी छोड़े साथ,
वो साथी बेकार लगा।
रोकर जीवन अब न गुजरे,
दुख को परे झटकना हो,
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

टूटे पँखों को लेकर के,
कैसे जीवन जीना हो।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

काँटे हैं चुभने के लिए,
कदम रोक मत लेना तुम।
अँधियारे भरे जीवन में,
दीपक आस जलाना तुम
मिल जाए सच्चा साथी,
सुख से दामन भरना हो।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

सन्नाटे में मन का शोर ,
सोए दर्द जगाता है।
रातों में छुप-छुपकर चँदा,
सच्चाई कह जाता है।
उम्मीद की किरण बहुत है ,
चाहे प्रकाश झीना हो।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।

टूटे पँखों को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।।
घुट-घुटकर ही मरना नहीं,
हँसकर जीवन जीना हो।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

9 comments:

  1. सच है टूटे पंख ले कर जीना आसान नहीं होता ...
    पर इसे जो पार कर लेता है मोती उसको ही मिलता है ... सुन्दर रचना ...

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  2. वाहः टूटे पंखों को लेकर

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  3. टूटे पंखों को लेकर जीवन जीना बहुत ही मुश्किल होता है लेकिन टूटे पंखों के साथ जीना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है, सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों ही प्रकार के भाव मिश्रित किए हैं आपने अपनी इस रचना में
    ..👌 बहुत ही अच्छी रचना बधाई हो आपको

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  4. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. मन के भावों को प्रगट करती बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।

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