पाप बढ़ा धरती पे भारी
कलयुग पाँव पसारे।
नारी तन की करे प्रदर्शनी
बेटा बाप को मारे।
सच्चाई पड़ती महँगी
झूठ बढ़ाता शान।
इंसानियत सिसकती कोने
हँसते जग बेईमान।
धर्म कराहे लंगड़ा होकर
अधर्म सिंहासन बैठा।
द्वेष भावना मन में पाले
अपनों से रहता ऐंठा।
एक द्वेष की फिर चिंगारी
रिश्ते पल में सुलगते।
नारी के आँचल में पलकर
नारी तन ही कुचलते।
प्रीत दिखावे में लिपटी
जिव्हा भी मिसरी बोले।
पीछे पीठ पर घात करें
और जहर ज़िंदगी घोले।
मानव की कैसी ये लीला
विनाश पथ ही चलता।
जीवन संसाधन को मिटाने
मानव में दानव पलता।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
बहुत बढ़िया। लाजवाब,बिल्कुल सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी।
Deleteसार्थक चिन्तन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteआदरणीया मैम ,
ReplyDeleteआपने एक बहुत ही सटीक कविता लिखी आज की परिस्थिति पर। सच है मानव मूल्यों का जो पतन आज के दौड़ में हो रहा है वह पहले कभी नहीं हुआ था। मैं अपनी नानी से उनके समय की कहानियाँ सुनती हूँ , लगता है की बिना किसी भौतिक सुख -सुविधा के भी वह समय कितना सुंदर और अपनत्व से भरा हुआ था।
बहुत ही सुंदर रचना के लिए हृदय से आभार।
मेरा अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। मैं ने अपनी नई रचना "स्नेहामृत " अपलोड की है। आपके आशीष व प्रोत्साहन की आभारी रहूँगी ।
हार्दिक आभार अनंता।
Deleteप्रीत दिखावे में लिपटी
ReplyDeleteजिव्हा भी मिसरी बोले।
पीछे पीठ पर घात करें
और जहर ज़िंदगी घोले।
मानव के छद्म कुकृत्यो की पोल खोलती सार्थक अभिव्यक्ति अभिलाषा जी. बहुत बढ़िया लिखा आपने🙏🙏
हार्दिक आभार सखी।
Deleteअनुराधा जी क्षमा चाहती हूँ आपके नाम की जगह अभिलाषा जी का नाम लिखा गया, आज उनके ब्लॉग पर भी गयी थी शायद इसी वजह से उनके नाम का स्मरण रहा. आशा है अन्यथा नहीं लेंगी आप 🙏🙏
Deleteअरे आप क्षमा क्यों माँग रही हैं सखी।हम दोनों के नामों में अक्सर ऐसी गड़बड़ हो ही जाती है। इसमें बुरा लगाने जैसी कोई बात नहीं है। आपकी प्रतिक्रिया मिलना ही बहुत बड़ी बात है 🙏🌹😊
Deleteपाप बढ़ा धरती पे भारी
ReplyDeleteकलयुग पाँव पसारे।
नारी तन की करे प्रर्दशनी
बेटा बाप को मारे
प्रारंभिक पंक्तियाँ ही कलयुग के कलुषित वातावरण का वर्णन कर रही हैं। सार्थक व सटीक रचना।
प्रर्दशनी - प्रदर्शनी होगा।
Deleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteजी टाइपिंग मिस्टेक हो गई थी।
Deleteप्रीत दिखावे में लिपटी
ReplyDeleteजिव्हा भी मिसरी बोले।
पीछे पीठ पर घात करें
और जहर ज़िंदगी घोले।
प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteमानवीय प्रकृति पर सुंदर वैचारिक सृजन सखी।
ReplyDeleteसार्थक सृजन सुंदर सृजन।
हार्दिक आभार सखी
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