मोल नहीं माँ की ममता का
दिल की होती बहुत धनी।
दुख की धूप न आने देती।
बनकर ममता छाँव घनी।
माता के आँचल में छुपकर
करते हरदम शैतानी।
ज्यों निकले माता से ऊँचें
कर बैठे सब मनमानी।
परे झटक फिर हृदय दुखाते
बात बात पे रार ठनी।
मोल नहीं माँ....
चढ़ी सफेदी बालों में फिर
भले काँपते पैर चले।
माँ की गोदी में सिर रखकर
जीवन की हर खुशी मिले।
भूल न जाना माँ की महिमा
कभी न रखना भवें तनी।
मोल नहीं माँ.....
फिरे ढूँढते स्वर्ग जगत में
सारी दुनिया घूम गए।
स्वर्ग बसा माँ की गोदी में
उसको ही सब भूल गए।
सदा लुटाती माँ बच्चों पे
आशीषों की धूप छनी।
मोल नहीं माँ....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 19 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteअति सुन्दर सृजन - - माँ की ममता का कोई मोल नहीं - -
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