ताप चढ़ाकर सूरज हँसता
धूप ठूंठ पे फिर लहकी।
देख धरा का तपता सीना
बैठ तने चिड़िया चहकी।
गर्म हथोड़े तन पे मारे
धूप निचोड़े तन पानी।
गर्म हवा इतराती चलती
याद दिलाती है नानी।
बंद झरोखे से मन झाँके
धूप कनक लगती दहकी।
ताप चढ़ाकर....
नीम खड़ा इतराया तनके
छाँव तले राही आया।
मार कुठारी वन को काटे
आज खड़ा शीतल छाया।
काट रहा है अपना बोया
देख कर्म माटी महकी।
ताप चढ़ाकर....
खेत चटककर दुखड़ा रोते
सूख गया नदिया का जल।
मौन दिखा अम्बर भी बैठा
कौन निकाले इसका हल।
देख बिलखते खण्डित हांडी
भूख पेट की फिर बहकी।
ताप चढ़ाकर....
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 23 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteखेत चटककर दुखड़ा रोते
ReplyDeleteसूख गया नदिया का जल।
मौन दिखा अम्बर भी बैठा
कौन निकाले इसका हल।
आज की स्थितियों को बयां करती सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteगर्म हवा इतराती चलती
ReplyDeleteयाद दिलाती है नानी।
बंद झरोखे से मन झाँके
धूप कनक लगती दहकी।
ग्रीष्म ऋतु का जीवन्त चित्रण ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteबेहद खूबसूरत रचना ,जीवंत चित्रण मीना जी ने सही कहा है, बधाई हो, शुभ प्रभात, इस ब्लॉग के बारे में आज ही पता लगा, मगर अच्छा हुआ, नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteबहुत सुंदर शब्दों में आज की स्थिति कह दी है .... अभी भी मनुष्य चेत नहीं रह ।।प्रकृति से खिलवाड़ करता चला जा रहा ।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteकाट रहा है अपना बोया
ReplyDeleteदेख कर्म माटी महकी।
सच,अपना ही बोया तो काट रहें है,सुंदर सृजन सखी
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत लाजवाब रचना ... आज के समय को बाखूबी लिखा है आपने ...
ReplyDeleteहोली की हार्दिक बहाई ...
यथार्थ पूर्ण सृजन, होली की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।
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