साधारण सी एक थी,बाला अद्भुत नेक।
सच्चे मन करती सदा,शिव का वो अभिषेक।
शिव का वो अभिषेक,पिता की बिटिया प्यारी।
कोमल मन के भाव, बड़ी सुंदर सुकुमारी।
कहती अनु यह बात, गुणों को करती धारण।
यश वैभव था नाम, नहीं थी वो साधारण।
नाम पिता मान्कोजी शिंदे ,
पाटिल कहलाते थे गाँव।
कन्या रत्न अहिल्या जन्मी,
रखते थे पलकों की छाँव॥१
चौंढी गाँव अहिल्या के घर,
मात-पिता की बढ़ती शान।
चंचल सुंदर सबकी प्यारी,
करती थी सबका सम्मान॥२
प्रश्न अनेकों बचपन से ही
करती सबसे वो संवाद।
नारी ही पीड़ा क्यों सहती
करती इस पर वाद विवाद।३।
ठान लिया था उसने मन में
करना होगा यह बदलाव।
नारी के उलझे जीवन में
आए थोड़ा सा ठहराव॥४
शिव शंभू की घोर पुजारिन
देती थी बातों से मात।
तोड़ सभी बातों से लेकर
सच्चाई की करती बात।५।
तेज दमकता मुख मंडल पर
खेल रही सखियों के साथ।
भाग्य लिखा था प्रभु सोने से
किसने सोचा उसके हाथ।६।
एक नजर में राजा भाँपे
मेरे कुल की होगी शान।
आगे चलकर राज करेगी
रानी होगी एक महान।७।
देख परख सारे गुण उसके
कहते सबसे फिर मल्हार।
सारे जग में नाम करेगी
तोड़ बुराई का हर भार।८।
छवि अद्भुत इसकी लगे,प्रतिभा है भरपूर।
नाम करेगी मालवा,दिवस नहीं अब वो दूर॥
खांडेराव से विवाह कर,ले जाऊँ निज धाम।
करे होलकर वंश का,जग में ऊँचा नाम॥
अपने सुत से ब्याह रचाकर
सुख पाया मैंने यह आज।
तेज बहुत है इस बेटी में
हृदय खुशी के बजते साज।१०।
खंडेराव बना पटरानी
ले आए तब अपने साथ।
यश वैभव झुकते उस आगे
ईश्वर रखें सिर पर हाथ।११।
खांडेराव बड़े ही क्रोधी
करते थे उनका अपमान।
हँसके सहती क्रोध अहिल्या
पाया फिर हिस्से का मान।१२।
मान अहिल्या की बातें फिर
राजकाज पर देते ध्यान।
सीख लिए रणकौशल सारे
राज मराठा बनकर शान।१३।
मालेराव पुत्र घर जन्मा
रजवाड़े की बढ़ती शान।
मुक्ता नाम रखा बेटी का
करते उसका सब सम्मान१४।
शिक्षा का अधिकार मिला फिर
जीवन का समझा सब सार।
अल्प समय सिंदूर मिटा फिर
सिर पर आया शासन भार.१५।
सिंदूर मिटा भू पर गिरी, टूट गया विश्वास।
ठान लिया होगी सती,बची न कोई आस॥
भोर अँधेरी हो गई,दुख बदली आकाश।
दिखता जीवन में नहीं,उजला कहीं प्रकाश॥
काल बना कुम्भेर युद्ध फिर
छीना रानी का शृंगार।
चलती साथ सती होने को
राह खड़े होते मल्हार।१६।
लाया था घर सोचकर,बदलोगी कटु रीति।
तुम सक्षम हर काज में,सीखो शासन नीति॥
नाम होलकर वंश का, तुमसे जाने लोग।
बदलो कड़वे नियम को,बने हुए हैं रोग॥
बेटी तेरी क्षमता जानूँ
थाम चलेगी जब तलवार।
मान तुझे हर ओर मिलेगा
होगी तेरी जय-जयकार।१७।
बात ससुर की मानी उसने
हाथ उठाई फिर तलवार।
बेटा सम समझा है मुझको
वचन निभाऊँगी हर बार।१८।
आप मुझे आशीष यही दो
खुश रख पाऊँ सारा देश।
दीन दुखी की सेवा करके
बदलूँ में सारा परिवेश।१९।
सीखे भेद सभी उसने फिर
करती सबका वो उद्धार।
साथ ससुर का भी फिर छूटा
झेल रही थी दुख का भार।२०।
दिव्य दमकती आभा उसमें
करती सबके हित में काम।
सबके मन में जगह बनाकर
ऊँचा करती जग में नाम।२१।
जीत लिया मन सबका उसने
साथ चली लेकर परिवार।
दीन दुखी की चिंता करती
दूर हटाती दुख का भार।२२।
*दुर्मिल सवैया*
सबकी सुनती मनकी करती,हरती जन पीर नहीं डरती।
सपने बिखरे अपने बिछड़े,जनमानस में खुशियाँ भरती।
शिव पूजन से सब काम शुरू,सबसे सुख काम सदा करती।
दुख आन खड़े जिसके पथ पे,सब दूर हटा दुखड़े हरती।
बच्चे भी परलोक सिधारे
देख रही थी सब असहाय।
जीवन में संघर्ष भरे थे
सुख को डसती किसकी हाय।२३।
सिंहासन जब रिक्त हुआ तो,
शीश अहिल्या आया भार।
विचलित होकर काम न होगा,
करनी होगी बाधा पार।२४।
रिपु दल भी आँखें टेढ़ी कर,
झाँक रहा था शासन ओर।
भाँप लिया रानी ने संकट,
देख रही थी चारों छोर।२५।
चिट्ठी लिख के पेशवा,माँगा शासन भार।
देखे थे यह एक दिन,स्वप्न ससुर मल्हार॥
रानी को शासन नहीं,सोचे मन कुछ लोग।
नारी कैसे राज का,संभाले उपयोग॥
हाथ प्रजा के सिर के ऊपर,
बैठ गई गद्दी इंदौर ।
तीखे तेवर देख हटे रिपु,
रानी का आया जब दौर।२६।
सेनानी थे वीर तुकोजी,
उनको सौंपा सारा भार।
संस्कारों का मान बढ़ाकर,
उत्तम गुण सिखलाती सार।२७।
रानी का परिवार मिटा फिर
वीर तुकोजी देते साथ।
बात अहिल्या को वो माने
बनके उनका बायाँ हाथ।२८।
देवी तुल्य अहिल्या बाई
उनकी होती जय-जयकार।
कूटनीति से चाल चले जब
रिपु दल की फिर होती हार।२९।
जान अकेली अबला नारी
राघोबा ने खेला दाँव।
सोचा कौन बचा है रक्षक
जो देगा रक्षा की छाँव।३०।
राघोबा फिर सेना लेकर
चढ़ आया नदिया के पार।
दूत कहे आकर रानी से
रिपु दल लड़ने को तैयार।३१।
सुनकर बात अहिल्या बोली
हाथ उठालो सब तलवार।
रिपु दल को देकर संदेशा
कहना तेरी तय है हार।३२।
नारी से रण जीतने,आए लेकर आस।
हार मिले या जीत हो,तेरा जग उपहास॥
देती हूँ थोड़ा समय,करलो अभी विचार।
होनी है सम्मान की,तेरी रण में हार॥
नारी सेना से जीत गया,
तो भी तेरा नीचा मान।
हार गया नारी से तो फिर,
मिट्टी मिल जाए सम्मान।३३।
विधवा दुखियारी जान मुझे,
तान खड़े होते तलवार।
नारी सेना कमजोर समझ,
करने आए हो संहार।३४।
करदी गलती ये घोर बड़ी,
किस कोने मुख जाओ ढाँप।
नारी से शासन छीन सको,
है बल तुममें यह भी भाँप।३५।
एक पत्र तीखा वार किया,
राघोबा ने मानी हार।
अपनी गलती को मान चला,
शीश बढ़े लज्जा का भार।३६।
रानी का संदेश पढ़ा जब
रिपु दल लौटा उल्टे पाँव।
युद्ध किए बिन रानी ने फिर
जीत लिया था अपना दाँव।३७।
कमजोर समझकर रानी से
राघोबा ने खाई मात।
चतुराई से शासन करती,
मीठे सुर में करती बात।३८।
एक नहीं जाने कितने जन
रानी से हारे हर बार।
पीड़ित की हर पीड़ा हरती
करती थी सबका उद्धार।३९।
दान-पुण्य कर सेवा करती
रखती दुर्बल से भी प्रीत।
नारी को सम्मान दिलाकर
जीवन में भरती संगीत।४०।
सुंदर बाग किले बनवाए,
चमक उठा था देश प्रदेश।
मंदिर घंटे गूँज रहे थे,
मिटते सारे मन से क्लेश।४१।
सुख बरसे शासन में उसके,
जनहित की सोचे हर रोज।
सच्चाई की रानी मूरत,
करती नित ही नूतन खोज।४२।
टूटे मंदिर फिर बनवाए,
खुलवाए थे बंद कपाट।
काशी की सुंदर नगरी में,
बनवाए थे सुंदर घाट।४३।
सोमनाथ से द्वारका,विश्वनाथ का धाम।
काशी गंगा घाट पर,गूँज रहा था नाम॥
मथुरा से वाराणसी,जगन्नाथपुरी धाम।
बनवाई फिर बावड़ी,किए अनेकों काम॥
घाट कुएँ मंदिर बनवाए,
नव आशा के फूँके प्राण।
गाँव नगर तक शिक्षा पहुँची,
विद्यालय का कर निर्माण।४४।
कितनी बावड़ियाँ बनवायी,
खुलवाए थे घर विश्राम।
हस्त कलाएं विख्यात हुई,
दीन दुखी को मिलता काम।४५।
रानी नेक महेश्वर की,करती कब आराम थी।
सदा होलकर वंश का,ऊँचा करती नाम थी॥
रण कौशल में होकर निपुण,देती सबको मात थी।
तेज झलकता था चेहरे, अद्भुत उसकी बात थी॥
सत्य सदा जिह्वा पर रहता,
शिवलिंग लिए रहती हाथ।
न्याय सदा ही सच्चा करती,
देती थी निर्बल का साथ।४६।
दृढ़ संकल्प किया जो उसने,
करती पूरा मन में ठान।
कुल की शान बढ़ाई उसने,
मिलता शुभ कर्मों का मान।४७।
वंशज कोई न रहा बाकी,
एक अकेली घर में नार।
चलती सच के पथ पे हरदम,
बातों में कैंची सी धार।४८।
पुण्य नर्मदा तट पर आकर,
कठिनाई सब करती पार।
व्यापार बढ़ाती कितने फिर,
शासन का करती विस्तार।४९।
राज धरोहर मानी उसने,
करती जनता का आभार।
जीवन सेवा में अर्पण कर,
बनती सबकी पालनहार।५०।
नारी भय से मुक्त करे फिर,
अंकुश कसके डाकू चोर।
शासन में खुशियाँ वो भरती,
बंद हुआ आतंकी शोर।५१।
आत्म प्रतिष्ठा जिंदा रखकर,
नव युग का करती आरंभ।
जाने कितने नगर बसाए,
सुविधा शिक्षा का प्रारंभ।५२।
संतान समझकर जनता को,
करती सारे दूर विवाद।
नारी सेना कमजोर नहीं,
दूर किया मन से अपवाद।५३।
इकलौता बेटा भी खोया,
खोया प्यारा फिर दामाद।
टूट गई थी अंदर लेकिन,
सुलझाती थी राज विवाद।५४।
वंश मिटा जब छोड़ गया था,
प्यारा पोता उनका साथ।
भूमि गिरी चित्कार करे फिर,
दुख लिखते प्रभु उसके हाथ।५५।
गंगाधर ने बहुत रचाएं,
षड़यंत्रों के काले काम।
चाल पलट कर रानी अपने,
कुल का करती ऊँचा नाम।५६।
भीलों गोडों से शासन की
रक्षा करती थी हर बार।
एक बहादुर योद्धा के सब
गुण उनमें थे अपरम्पार।५७।
धीरे-धीरे उसने अपनी,
छाप बनाई थी हर ओर।
नारी सत्ता धारण करके,
ला सकती है सुंदर भोर।५८।
छोटा-सा जीवन जीकर जब,
दामाद लिए अंतिम साँस।
बेटी होती संग सती फिर,
देख गले फंसी थी फाँस।५९।
रोक रही थी रो-रोकर पर,
बेटी हठ से मानी हार।
धीरे-धीरे उसने सबको,
रीत बुरी समझाया सार।६०।
खालीपन जीवन में लेकर,
मुस्कान लिए करती काम।
शिव का मुख पर ले नाम सदा ,
करती पूजन आठो याम।६१।
संतान समझ सब जनता की,
माता बनकर हरती पीर।
सुख में उनके वो खुश होती,
दुख देख भरे नयना नीर।६२।
कोई घर में और नहीं था,
जिसके बल पर चलता वंश।
दत्तक सुत मल्हारराव के,
वीर तुकोजी उनका अंश।६३।
अनदेखी करने की उनको,
रानी करती कैसे भूल।
सेनापति पद सौप तुकोजी,
लो संभालो भार समूल।६४।
विचार विमर्श करती उनसे,
अब वो ही थे बस परिवार।
राजा उनको गोद लिए थे,
करते थे बेटे सम प्यार।६५।
मान अहिल्या उनका करती,
शासन के बतलाती राज।
विश्वास भरा उनको लेकर,
सौंप दिए थे सारे काज।६६।
हाथी ऊपर बैठ के,लड़ती रानी वीर।
रण कौशल उसमें भरा,मन में रखती धीर॥
राजनीति आवेश में,करे न कोई काम।
सोच-समझ निर्णय करें, ऐसा उनका नाम॥
वीर अहिल्या ऐसी रानी,
जिसने मानी न कभी हार।
सहयोग सदा सेना करती,
रिपु दल पे हों तीखे वार।६७।
हाथी चढ़कर रण में उतरे,
तीरंदाजी से कर वार।
सम्मान सदा जीता उसने,
अभिमानी का कर संहार।६८।
बिजली सी तलवार चलाती,
शीश गिराए उसने काट।
दुर्गा रूप लिए वो लड़ती,
रानी का अलबेला ठाट।६९।
चंद्रावत ने आँख तरेरी,
रानी करती घोर विरोध।
जीत सभी पर उसने पायी,
राह हटा के सब अवरोध।७०।
संदेश सिखाए वो सबको
नारी मन मत देना घात।
नारी कोई कमजोर नहीं
सिखलाती है सबको बात।७१।
घोड़े चढ़कर खड़ग चलाती,
रिपु दल आगे सीना तान।
वीर अहिल्या चंड़ी बनकर,
काट रही रिपुयों के कान।७२।
नारी होकर शासन करती,
देख गले चुभती थी फाँस।
कर-कर हारे जतन निराले,
वापस लेकर उखड़ी साँस।७३।
खूब भिड़ाई सबने तिकड़म,
सिंहासन पाने इंदौर।
हार मिली थी सबको जमके,
ऐसा था रानी का दौर।७४।
चाल चले वो ऐसी हरदम,
देती षड़यंत्रों को मात।
किस्मत ही उसको देती थी,
समय-समय पर पैनी घात।७५।
एक बहादुर योद्धा बन के,
पायी उसने हरदम जीत।
मार्ग दर्शन कर सेना का,
सच्चाई से रखती प्रीत।७६
गौरव गरिमा बढ़ती जाती,
करती ऐसे काम महान।
वीर मराठा शासक बनकर,
अपने खूब बढ़ाती मान।७७।
संतोष सदा मन में रखकर,
हर मुश्किल का ढूँढें तोड़।
हर पथ पर आगे बढ़ जाती,
कठिनाई को पीछे छोड़।७८।
इंदौर सदा संपन्न हुआ,
और बढ़ा था व्यापार।
व्यापारों को श्रेष्ठ बनाया,
बन कष्टों में हिस्सेदार।७९।
दिव्य अलौकिक प्रतिभा बनके,
अँधियारे को करती दूर।
शासन उसके फूल रही थीं,
जनजीवन खुशियाँ भरपूर।८०।
देवी तुल्य अहिल्या बाई,
सबके मन में करती वास।
दीन दुखी की चिंता करके,
पूरी करती मन की आस।८१।
प्रेम अटूट महारानी का,
बन जाते थे दुर्जन मीत।
ममता की मूरत रानी के,
गाते थे सब सुंदर गीत।८२।
चतुराई से निर्णय लेती,
जनमानस भरती उत्साह।
सबके जीवन खुशियाँ भरके,
दायित्व सदा कर निर्वाह।८३।
विधवाओं की पीर हरे फिर,
रखकर अपनी शीतल छाँव।
जीवन में बनके सहयोगी,
बंधन काटे उनके पाँव।८४।
गंगोदक सवैया
212 212 212 212, 212 212 212 212
शासिका रूप में ओढ़ ती दुख सभी,बाँटती थी सदा प्रेम के साज को।
द्वारका से गया लौट के नर्मदा,श्रेष्ठ देवालयों के करे काज को।
मालवा की बनी शासिका जान के,लूटने चोर आए कई राज को।
वीरता देख जाते सभी लौट के, दंड देती अनेको नशेबाज को
अनुशासन के पालन से फिर,
गुण गौरव फैला हर और।
सीधा सच्चा जीवन उनका,
शान प्रतिष्ठा थी सिरमौर।८५।
दीन अनाथों को दे आश्रय,
करती थी उनपर उपकार।
प्रेम सदा मुख छलके उनके,
दुखियों के दुख करती पार।८६।
घोर परीक्षा भगवन लेते,
देख हुई रानी गंभीर।
साहस का परिचय देकर फिर,
खोया न कभी अपना धीर।८७।
संबल देकर निर्बल को फिर,
सिखलाए थे अच्छे काज।
चोर डकैती करने वाले,
घबराकर फिर आए बाज।८८।
एक मराठा शासक बनकर,
श्रेष्ठ पढ़ाया उसने पाठ।
कुल मर्यादा मान बढ़ाती,
ऐसा था रानी का ठाठ।८९।
जो ठाना वो कर दिखलाया,
नाम अहिल्या होता सिद्ध।
अन्याय नहीं सहती जनहित,
होता उसका न्याय प्रसिद्ध।९०।
रोड़े पथ में डाल रहे थे,
शासन में रहते कुछ लोग।
छीन झपट कर लेना चाहें,
राज मराठा का सुख भोग।९१।
रानी पड़ती सब पर भारी,
देख उड़े उनके मुख रंग।
अद्भुत उनकी प्रतिभा से फिर,
रह जाते थे हरक्षण दंग।९२।
कानून कड़े करके करती,
आक्रांताओं का मुख बंद।
देखा उसका तेज सभी ने,
जल जाते थे रिपु दल चंद।९३।
शिव को वो आधार बनाके,
करती जनमानस का न्याय।
नारी को हर सुविधा देकर,
रोक रही थी हर अन्याय।९४।
वीर अहिल्या बाई का जब,
डंका बजता था हर ओर।
उसके आगे चाल न चलती,
छुपते डरके डाकू चोर।९५।
गंगोदक सवैया
राजसी वेश में सादगी ओढ़ती,लालसा भावना कामना छोड़ती।
दंभ तोड़े कई बार थी वो हठी,नाम शंभू महादेव का जोड़ती।
भूमिका शासिका की निभाती सदा,दीन नारी नहीं ये अहं तोड़ती।
बेड़ियाँ काटती वो बुरी रीत की, मालवा की हवा का रही मोड़ती।
माता श्री कहते सब उनको,
करते सच्चे मन से प्यार।
रानी की महिमा अति न्यारी,
सीने रखती भाव उदार।९५
आदर से सब देवी माने,
सेवा का रखते थे भाव।
रानी दुविधा दूर हटाती,
पार लगाती सबकी नाव।९६।
घोर परीक्षा भगवन लेते
हँसकर सह लेती चुपचाप।
सौंप दिया प्रभु चरणों में मन
जीवन ऐसा था निष्पाप।९७।
पीर सही जीवन में भारी,
फिर भी हरती सबकी पीर।
दोनों हाथों प्यार लुटाती,
संकट में रखती थी धीर।९८।
गाँव कभी छोटा सा लगता,
आज बना उन्नत इंदौर।
रंगत फिर नगरी में बदली,
रानी लाई ऐसा दौर।९९।
नारी को अधिकार दिए सब,
शोषण सारे करके बंद।
काले कानून सहे कब तक,
उसके भी है सपने चंद।१००।
संरचना विकसित नगरों की ,
सुविधा से रहती भरपूर।
जगह-जगह पीने का पानी,
दुख रहता था कोसों दूर।१०१
सुखमय हलधर का जीवन हो,
मन में रखती ऐसे भाव।(विचार)
सिंचाई सुविधा उत्तम हो,
श्रेष्ठ रहे फसलों का भाव।(दाम)१०२।
चाल पलट के अंग्रेजों की,
मुट्ठी में रखती थी जीत।
दीन-दुखी के हर संकट में,
बन जाती थी उनकी मीत।१०३।
ऐसी अद्भुत रानी जिसके,
जीवन में कष्टों का भार।
पल भर में वो काट गिराती ,
राह अड़े कंटीले तार।१०४।
हार नहीं रानी ने मानी ,
कष्टों का सिर बोझ अपार।
हर संकट में निर्भय होकर,
दूर हटाती सबका भार।१०५।
बस कालचक्र आगे उसका,
चल पाया कब कोई जोर।
घोर अँधेरा अंतस था पर,
पकड़े चलती आशा डोर।१०६।
जीवन के सूनेपन में बस,
केवल रहता प्रभु का ध्यान।
जीवन भर अपनाया सबको,
मान प्रजा अपनी संतान।१०७।
आक्रांताओं ने तोड़े थे,
मंदिर बनवाए वो खास।
तीर्थों पर बनवा के प्याऊ
प्यासों को पूरी की आस।१०८।
भोर हजारों शिवलिंगों की,
पूजा करती थी हर रोज।
पूजा पाठ किए बिन रानी,
लेती न कभी पानी भोज।१०९।
रुढ़िवादी सोच हटाने की,
कोशिश करती थी पुरजोर।
पथ कंटक था फिर भी रानी,
लाना चाहे सुख की भोर।११०।
हाथ लिया जब शासन अपने,
नाम लिखी थी पहली जीत।
जनसाधारण देख रहा था,
रानी की यह अनुपम रीत।१११।
गंगा जल सम निर्मल जीवन,
मुख में रहता था शिवनाम।
तीरथ सुविधा श्रेष्ठ बनाई,
बनवाए थे शुभ शिवधाम।११२।
विश्वासी जब बनकर घाती,
राघोबा के मिलता साथ।
सेना ले क्षिप्रा तट आया,
लौटा उल्टे खाली हाथ।११३।
बोझ करों का कम वो करती,
सुविधाएं देती भरपूर।
रोज सभी के दुखड़े सुनती,
जनता का दुख करती दूर।११४।
गौरव गाथा गूँजी जग में,
रानी के विरले थे काम।
आज सभी आदर से लेते,
मात अहिल्या का फिर नाम।११५।
शासन भार बड़ी निष्ठा से,
संभाला था पूरे काल।
अंतस फैली करुणा रूपी,
आभा से चमका था भाल।११६।
अनुपम साहस की प्रतिमूर्ति,
घोर विरोधी थी पाखंड।
धर्म सदा ही ऊँचा माना,
दुष्टों को देती थी दंड।११७।
सुंदर बाग किले बनवाए,
देती सबको भर-भर दान।
मंदिर घंटे गूँज रहे थे,
जैसे खुश होते भगवान।११८।
अंग्रेजों से रखती दूरी,
सबकी करती वो परवाह।
शांति भरा शासन उनका,
सुख से सब करती निर्वाह।११९।
खुशियाँ चारों ओर खिली थी,
तीन दशक के शासन काल।
कोप विधाता का सहकर भी
तेज बड़ा था उनके भाल।१२०।
जीवन के अंतिम पथ आकर,
सारे भारत में विख्यात।
मान मिला सम्मान मिला पर,
विधना देती गहरे घात।१२१।
सन सत्रह सौ पंचानवे,उनका अंतिम साल था।
राज तुकोजी को सौंप के,मुकुट सजाया भाल था।
जीवन भर खुशियाँ बाँट के,त्यागे अपने प्राण थे।
रोते थे नर-नारी सभी,उनका प्रेम प्रमाण थे।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार
वाह!!बहुत ही खूबसूरत रचना👌👌👌👌कमाल का लेखन!👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत शानदार शतक अहिल्या बाई पर।
ReplyDeleteभाव उत्कृष्ट,और काथा काव्य प्रवाह लिए स्पष्ट ।
बीच बीच में कुण्ड़लियाँ छंद,उल्लाला, दोहे,सवैये की अद्भुत छटा।
अनुपम सृजन।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteअनुपम सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी।
Deleteअद्भुत, अनुपम,हृदयस्पर्शी सृजन..शत् शत् नमन लेखनी और आप को✍️✍️✍️🙇🙇😍😍😍😍💐💐💐💐🙏🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीपिका।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-06-2021) को 'भाव पाखी'(चर्चा अंक- 4101) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
अनिता सुधीर
अद्भुत लेखन ।
ReplyDeleteअहिल्या बाई के विषय में कभी बचपन में ही थोड़ा पढ़ा था । लेकिन आपकी रचना ने कितने विस्तार से पूरा इतिहास बता दिया । प्रशंसा के शब्द कम पड़ रहे , बताइए क्या करें ।
अलौकिक सृजन 👌👌👌👌👌👌🌹🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐💐💐💐
हार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteपूरा इतिहास ही बता दिया आपने अपनी रचना के माध्यम से अद्भुत सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteविस्तृत जानकारी देता बढ़िया सृजन! बहुत प्रशंसनीय रचना!
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनुपमा जी।
Deleteअद्भुत काव्य
ReplyDeleteआपकी रचना ने जीवंत चित्रण कर दिया
इतिहास को समेटे
हार्दिक आभार अनीता जी
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteनमन्य रचना....
ReplyDeleteइस रचना के लिए आपको साधुवाद अनुराधा चौहान'सुधी'जी 🙏
हार्दिक आभार आदरणीया शरद जी
Deleteअहिल्या बाई के सम्पूर्ण जीवन को अद्भुत और जीवंत काव्य कथा का रूप दिया है आपने सखी,अद्भुत सृजन...इतने श्रमसाध्य सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteशानदार सृजन सुधी जी 💐💐💐
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सखी।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
सादर
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत सुंदर 👌👌👌 सधा हुआ शिल्प 👌👌👌 प्रशंसनीय
ReplyDeleteहार्दिक बधाई 💐💐💐 ऐसे ही निरन्तर सुंदर सृजन करते रहें ...
हार्दिक आभार गुरुदेव 🙏
Deleteआपकी सृजनात्मकता ने मंत्रमुग्ध कर दिया ...,श्रमसाध्य सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ अनुराधा जी!
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Delete
ReplyDeleteअहिल्या बाई के सम्पूर्ण जीवन की अद्भुत कथा को आपने कितनी सुन्दर भाषा में बाँधा।अद्भुत...अहिल्इया बई का सम्पूर्ण परिचय देती सशक्त रचना... सशक्त सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ।
हार्दिक आभार आदरणीया
Delete