करवाचौथ
मेहंदी रच के मुस्काती
बिंदिया माथे पर दमके।
कँगना बोले हाथों का फिर
कुमकुम माथे शुभ चमके।
ढूँढ रहे कजरारे नयना
चंदा छुपकर मुस्काए।
लहराती चूनर जब सजनी
अम्बर का मन हर्षाए।
छनक रही पायल पैरों में
धूम मचाती है जमके।
कँगना बोले……
वेणी बन झूले बालों में
पुष्प मोगरा भी महके।
देख समय की चंचलता को
पुरवा का मन भी चहके।
होंठों पर की लाली सजती
तार छेड़ती हर मन के।
कँगना बोले……
छलनी दीपक चढ़के बैठा
रूप सजाए मनभावन।
आस गगन का आँगन घूमे
आज दिवस सबसे पावन।
बदली पीछे हँसता चंदा
अश्रु हर्ष के जब छलके।
कँगना बोले……
चूड़ी खुश हो बोल उठी फिर
मंगल बेला है आई।
करवा हाथों में इठलाया
झूम रही है पुरवाई।
अर्घ्य चढ़ाने आतुर होती
सभी सुहागन बन-ठन के।
कँगना बोले.....
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना रविवार २४ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24 -10-21) को "मंगल बेला"(चर्चा अंक4227) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी।
Deleteसुंदर भाव भीनी रचना।
ReplyDeleteकरवाचौथ पर हार्दिक शुभकामनाएं सखी।🌷
हार्दिक आभार सखी। आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteवाह! बहुत खूबसूरत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteवाह अनुराधा जी, बहुत सुदर रचना "छलनी दीपक चढ़के बैठा
ReplyDeleteरूप सजाए मनभावन।
आस गगन का आँगन घूमे
आज दिवस सबसे पावन।
बदली पीछे हँसता चंदा
अश्रु हर्ष के जब छलके।
कँगना बोले……"मनभावन। काश! कोई इसे सुरों में पिरो सकता।
हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteअंतर्मन से निकले भाव ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ....