चमक रहा अम्बर पर नवीन तारा है।
कहीं मिटा धरती से किया किनारा है॥
घटे बढ़े यह जीवन सदैव ऐसे ही।
मरे जिए अरु जन्में प्रवास सारा है॥
प्रताड़ना इस सच की सहे सदा मानव।
विछोह कंटक जैसा सहे बिचारा है॥
अधीर हो मन बैठा पुकारता उसको।
चला गया तन से जो अपार प्यारा है॥
समेट लो अब अंतस प्रकाश यह अपने।
चले चक्र नव प्रभु से प्रबंध न्यारा है।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
अधीर हो मन बैठा पुकारता उसको।
ReplyDeleteचला गया तन से जो अपार प्यारा है॥////
किसी बिछुडें को समर्पित मार्मिक स्मृति-गीत प्रिय अनुराधा जी।सृष्टि में जीवन मिलन और विरह के दो रंगों से सजा है। यादों के सहारे जीना ही एक इन्सान की नियति है।सस्नेह के 🙏🌺🌺🌷🌷
यही जीवन चक्र है । कोई आता है कोई जाता है ।।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसमेट लो अब अंतस प्रकाश यह अपने।
ReplyDeleteचले चक्र नव प्रभु से प्रबंध न्यारा
यही तो जीवन है, कोई आता है कोई जाता है ।
सुंदर सराहनीय रचना ।
हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteसुन्दर सराहनीय सृजन अनुराधा जी !
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण गीतिका सखी।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति, नियति का खेल हम मानुष हैं कठपुतली, हम भी जाने तुम भी जाने कौन चलाये साँस की सुतली।
ReplyDeleteसादर।
भावपूर्ण अनुभूति और अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
हार्दिक आभार आदरणीय।
Delete