Thursday, May 31, 2018

पापा की लाडली


ओस की बूंदों सी
चमकती हुई,
आंगन में उतरी हूं
मैं एक नन्ही परी।
पापा मुझे देख
तुम उदास न होना,
गोद में उठा कर
ढ़ेरों आशीष देना।
भरूंगी खुशियों से
मैं आपका जीवन,
बस अपने सीने से
मुझे लगा लेना।
समझेंगे मुझे आप
जरूर एक दिन,
वादा है आपसे
हर फर्ज निभाऊंगी।
रौशन जहां में जब
आपका नाम होगा,
 बेटी का बाप होने का
आपको गुमान होगा।
साथ मेरा रहेगा सदा आपको,
जीवन में कभी भी
 न भुला पाऊंगी में।
डोली में बैठकर
जब चली जाऊंगी मैं,
बेटे से ज्यादा याद आऊंगी में।
अपने पापा की लाडली कहलाऊंगी में
       ***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, May 30, 2018

नारी शक्ति


आज के आधुनिक युग में
नारी शक्ति का बोलबाला है
यह सब तब संभव हुआ है
जब नारी ने अपना हुनर दिखाया है
समाज की सोच बदली
जिस समाज में बेटियों को
बोझ समझा जाता रहा
वही समाज आज बेटियों को
शिक्षित कर आगे बढ़ा रहा
नारी को अधिकार मिले
उन्होंने समाज को दिखा दिया
आज की नारी सब पर भारी
अपने मेहनत के दम पर
अंतरिक्ष में भी जा पहुंची
चिकित्सा का क्षेत्र हो
या शिक्षा का आँगन
हर जगह नारी आगे हैं
बस और रेल वो चला रही
हवाई जहाज भी उड़ा रही
नौकरी के साथ साथ
अपना घर भी संभाल रही 
नारी कभी कमजोर नहीं थी
उसकी प्रतिभा को पहचान न मिली
और जब पहचान मिली तो
उसने समाज को दिखा दिया
आज की नारी सब पर भारी
नारी शक्ति को प्रणाम
                  ***अनुराधा चौहान***

Tuesday, May 29, 2018

ख्वाहिशों का मकड़जाल

हम सभी ख्वाहिशों के मकड़जाल में
इस तरह उलझे हुए हैं 
उनसे बाहर आना मुश्किल है
ख्वाहिशें हमारे जन्म के साथ
जुड़ना शुरू हो जाती हैं
पैदा होते ही हम बच्चों के साथ
अपनी ख्वाहिशें जोड़ देते हैं
मेरा बच्चा बड़ा होकर
डाक्टर या इंजीनियर बनेगा
एक बच्चे के रूप में
हमारी ख्वाहिश होती है 
हमारे मां बाप हमारी
हर जिद्द पूरी करे
मां की यह ख्वाहिश होती है
बेटी को ऐसा ससुराल मिले
जहां वह राज करें
बहू से यह ख्वाहिश होती है
वह घर का पूरा काम करे
हम बेटों से यह ख्वाहिश रखते हैं
वह हमारे लिए श्रवण कुमार बने
जो हम चाहते हैं वो करें
हमारी सभी ख्वाहिशों को पूरा करें
हर कोई अपनों की
ख्वाहिशों को पूरा करने में लगा हुआ है
पर ख्वाहिशे हैं कि पूरा होने का
नाम नहीं लेती
भिखारी की ख्वाहिश की
वह राजा बन जाए
राजा की ख्वाहिश होती है
वह पूरी दुनिया पर राज्य करे
जिंदगी कम पड़ जाती है
पर ख्वाहिशें कभी खत्म
नहीं होती नित नई ख्वाहिश
जन्म लेती रहती है
उन्हें पूरा करने के लिए 
मेहनत भी करनी होगी
तभी हम ख्वाहिशों को
कर सकते हैं पूरा
ख्वाहिशे पालने से कुछ न होगा
इनके मकड़जाल से बाहर
निकल कर कर्म करना होगा
***अनुराधा चौहान***

प्रकृति की पुकार

कहीं आंधी चले ओले गिरे
कहीं सूखे की पड़ती मार
   और प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
 सूखती नदियां गिरता जलस्तर
 डोलती धरती बारम्बार
   यह प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
कटते पेड़ उजड़ते जंगल
छिन रहा धरती का श्रृंगार
    यह प्रकृति करे पुकार
    इसका मानव जिम्मेदार
संभल जाओ नहीं तो पछताओगे
पीने का जल कहां से लाओगे
  यह प्रकृति करे पुकार
 अब तो रुक जा तू इंसान
दिन पर दिन बढ़ता प्रदूषण
करता आसमां का सीना छलनी
   यह प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
कंक्रीटों के बढ़ते जंगल
करते पर्यावरण पर मार
 इसलिए यह प्रकृति करे पुकार
 अब तो रुक जा तू इंसान
 अब तो रुक जा तू इंसान
       ***अनुराधा चौहान***


रिश्तों के मायने


आज के दौर में
रिश्तों के मायने बदल गए
कल तक जो अपने थे
वो पराए हो गए
पैसे की चाहतों में
सब भूल कर बैठे
जिन रिश्तों में जिंदगी थी
उन्हें दूर कर बैठे
चारपाई पर लेट कर
बीते लम्हों को याद करते हैं
जो गुजरा है जमाना
उन लम्हों की बात करते हैं
समय के धुंध में
रिश्ते भी धुंधले हो गए
बीता जिन रिश्तों में
था बचपन कभी
बदलते दौर के साथ
बदले रिश्ते सभी
आज जब भी वो
बीते दिनों को याद करते हैं
पलकों में छुपे उनके
आंसू निकल पड़ते हैं
जो रिश्तों की बगिया में
बिताया करते थे पल
न जाने कैसे भूल जाते हैं
अपना बीता हुआ कल
***अनुराधा चौहान***

Monday, May 28, 2018

माँ

  
  माँ ही जन्नत माँ ही मन्नत
माँ में सब संसार
माँ की ममता को पहचानो 
माँ ही है भगवान
न इसका तिरस्कार करो तुम
यह प्रकृति का वरदान 
कष्ट सह कर के जीवन देती
प्रथम गुरु कहलाती माँ
माँ के आगे प्रभू भी शीश झुकाते
क्योंकि प्रभू से भी ऊंची है माँ
माँ के त्याग को कभी न भूलें
हर तकलीफों से लड़ जाती माँ
हो हम उससे नाराज़ भले ही
सब भुला गले लगा लेती है माँ
सृष्टि का अनमोल नगीना
होती है हम सबकी माँ
इतनी प्यारी होती है माँ
  ***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, May 27, 2018

बहुत याद आते हो

🙏भाई तुम्हें समर्पित 🙏
तुम जब भी याद आते हो
बहुत याद आते हो
भूलना चाहें अगर तुमको
कुछ याद दिला जाते हो
 तुम छोड़ दोगे साथ
कभी सोचा न था
हमारे मुस्कुराने की
वजह तुम थे
आज दिल टूटने की
वजह भी तुम हो
किस्मत भी आज
कहां ले आई
जीवन में आई यह
कैसी जुदाई
पूछती आंखें प्रभू से सदा
भूल कहां हुई मुझे बता
तुम से थी रौनकें सारी
अब सिर्फ छाई वीरानी
अब सब दिखावा लगता है
यह जीवन छलावा लगता है
भाई बिना यह सूना जीवन
जैसे कांटों भरा सघन वन
   ***अनुराधा****

रिश्ते अनमोल है


आज कल के रिश्ते
ओस की बूंदों जैसे
मतलब की धूप क्या लगी
मुरझा जाते हैं झट से
वजह यही है वक़्त नहीं है
रिश्तों की अहमियत नहीं है
देना चाहिए उनको वक़्त
आज-कल रहते हैं सब व्यस्त
रिश्तों बिना कैसी है ज़िंदगी
जीवन में नहीं मिलती खुशी
वक़्त निकालो अपनों के लिए
साथ रहो कुछ लम्हों के लिए
मिलकर देखो रिश्तों के संग
जिंदगी में बहुत खूबसूरत हैं रंग
रिश्तों के बिना सूना है जीवन
जूझता अकेलेपन से फ़िर मन
समय रहते रिश्तों में जी लो
थाम लो इन नाजुक बंधनों को
हमको रिश्ते देती भी जिंदगी है
हमसे रिश्ते लेती भी जिंदगी है
***अनुराधा चौहान***


Wednesday, May 23, 2018

बेटी का दर्द

न गोद में उठाया
न सीने से लगाया
बेटी थी आपकी
फिर भी ठुकराया
बाबा ने किया अनदेखा
दादी ने रुलाया
देख नफरत इनकी
मन मेरा घबराया
सोचा मां की ममता की
छांव में जी लूंगी
बेटी हूं मैं यह दर्द पी लूंगी
अपनाएंगे सब
एक दिन यह सोचकर
चिपक मां के
सीने से सोई थी मैं
आंखें खुली
तो बहुत रोई थी मैं
कचरे का ढेर
अजनबी आसपास
ताक रही आंखें
कहां मेरे मां बाप
भूल क्या हूई
जिसकी सजा मिली
अंश आपका थी
आज कचरा हूई..
 ***अनुराधा चौहान***

Tuesday, May 22, 2018

बचपन की मासूमियत

जीवन की भाग-दौड़ में
बचपन की मासूमियत
कहीं खोती जाती
हमारी पीढ़ी कार्यों में अपने
रहती है इतनी व्यस्त
पास नहीं है उनके
बच्चों के लिए थोड़ा सा वक़्त
पास नहीं हैं दादा-दादी
कौन सुनाए परियों की कहानी
रहते दिन भर वो अकेले
साथ नहीं कोई जिसके संग खेले
मोबाइल संग जोड़कर नाता
बचपन मासूमियत खोता जाता
***अनुराधा चौहान***