करवाचौथ
मेहंदी रच के मुस्काती
बिंदिया माथे पर दमके।
कँगना बोले हाथों का फिर
कुमकुम माथे शुभ चमके।
ढूँढ रहे कजरारे नयना
चंदा छुपकर मुस्काए।
लहराती चूनर जब सजनी
अम्बर का मन हर्षाए।
छनक रही पायल पैरों में
धूम मचाती है जमके।
कँगना बोले……
वेणी बन झूले बालों में
पुष्प मोगरा भी महके।
देख समय की चंचलता को
पुरवा का मन भी चहके।
होंठों पर की लाली सजती
तार छेड़ती हर मन के।
कँगना बोले……
छलनी दीपक चढ़के बैठा
रूप सजाए मनभावन।
आस गगन का आँगन घूमे
आज दिवस सबसे पावन।
बदली पीछे हँसता चंदा
अश्रु हर्ष के जब छलके।
कँगना बोले……
चूड़ी खुश हो बोल उठी फिर
मंगल बेला है आई।
करवा हाथों में इठलाया
झूम रही है पुरवाई।
अर्घ्य चढ़ाने आतुर होती
सभी सुहागन बन-ठन के।
कँगना बोले.....
*अनुराधा चौहान'सुधी'*