Friday, December 24, 2021

प्रीत की आहट

पूछते कुंडल खनक के
साज मन के क्यों बजे।
प्रीत की आहट सुनी क्या
स्वप्न जो नयना सजे?

लाज की लाली निखरकर
ओंठ को छूकर हँसी।
रात की रानी मचलकर
केश वेणी बन कसी।
माँग टीका क्यों दमककर
लाज धीरे से तजे?
पूछते.....

हार की लड़ियाँ मचलती
सुन प्रणय की आज धुन।
रैन आ देहरी पर बैठी
चूड़ियों का साज सुन।
क्यों हृदय की धड़कनों में 
आज शहनाई बजे?
पूछते.....

पायलें फिर से खनककर
हर्ष का पूछे पता
घुँघरुओं का मौन टूटा
देख लहराती लता।
झूमती पुरवाई संग
ले रही चूनर मजे।
पूछते....
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, December 22, 2021

दायज़



चला रहा सदियों से आरी
आशाओं के बाग खड़ा।
माँग बढ़ाता नित ही दायज़
अपनी हठ को लिए अड़ा।

गठबंधन लाखों में उलझा
हर फेरे पर माँग बढ़े।
फूट-फूट मंडप में रोए
स्वप्न कभी जो हाथ गढ़े।
दंभ भरी लालच की वाणी
लगे कुठारी पीठ जड़ा।
चला रहा....

लोभ लगाए पावन फेरे
लेकर मँहगे स्वप्न बड़े।
एक हाथ में स्वर्ण पोटली
दायज रूपी रत्न जड़े।
फिर भी अपने हाथ पसारे
हर मंडप के बीच लड़ा।
चला रहा....

बोझ बढ़ा पगड़ी पर भारी
मान बिलखता पग नीचे।
कोमल आशा अश्रु बहाती
बैठी अँखियों को मीचे।
मान झुके माँगों के आगे 
करके अपना हृदय कड़ा।
चला रहा....

प्रीत बिलखकर पीछे छूटी
विदा हुई कटुता सारी।
कड़वाहट की पेटी लेकर
डोली बैठी वधु प्यारी।
मात पिता की देख विवशता
हृदय निकलकर वहीं पड़ा।
चला रहा....
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, December 21, 2021

रूठी कविता


 आज कलम से रूठी कविता
कहीं छुपी मन के कोने।
घूम रही सूनी बगिया में
बीज शब्द के कुछ बोने।

भाव बँधे बैठे ताले में
बोल रहे धीरे-धीरे।
बिम्ब बिखेरे रात चाँदनी
कहती है नदिया तीरे।
शब्द मणी से भरलो झोली
चली चाँदनी अब सोने।
आज कलम से………

रक्तिम छवि लेकर शरमाए
भोर सुहानी मनभावन।
ओस लाज का घूँघट ओढ़े
छिपती है माटी आँगन।
दुविधा के केसों में उलझे
रस लगते आभा खोने।
आज कलम से………

शब्द नचे कठपुतली जैसे
पकडूँ तो भागे डोले।
मन बैरागी बनकर भटके
यादों के पट को खोले।
अंतस किरणें झाँक रही हैं
चढ़ा अँधेरा अब धोने।
आज कलम से………
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Friday, December 17, 2021

आस मिलन की


चंदा की डोली में चढ़के
झूम हँसी पुरवाई।
तारो के आँगन धीरे से
बैठ निशा शरमाई।

नीरवता को छेड़ उठी फिर
सूखे पत्ते की धुन।
धवल चाँदनी धीरे कहती
मन की बातें कुछ सुन।
चंचलता किरणों से लेकर
ओढ़ ओढ़नी आई।
तारों के....

सिंदूरी सपने फिर चहके
दीप जले मन आँगन।
बिन बारिश के बरसा है कब
प्रेम भरा यह सावन।
आस मिलन की राह देखती
छोड़ रही तरुणाई।
तारों के....

नींद खड़ी दरवाजे कबसे
पलकें लेकर भारी।
देख चला चंदा भी थककर
सूनी गलियाँ सारी।
भोर लालिमा धीरे से फिर
ले उठी अंगड़ाई।
तारों के.....

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Thursday, December 9, 2021

कहमुकरी छंद (शतक)

चुपके-चुपके जब भी आता।
तन मन में है आग लगाता।
सहा न जाए उसका भार।
ए सखि साजन? ना सखि बुखार!
अँखियों में छुपके यह डोले।
पलकों में यह सबको तोले।
पल भर में वो लगता अपना।
ए सखि साजन? ना सखि सपना।
थोड़ा सकुचा थोड़ा सिमटा।
हर पथ पर रहता है लिपटा।
देख अँधेरे वो शरमाया।
ए सखि साजन ?ना सखि साया।
मेरे मन को यह अति भाया।
दुबली-पतली इसकी काया।
मन करता है ले लूँ बोसा।
ए सखि साजन? ना सखि डोसा।
ठंड लगे तो याद सताए।
बिन उसके फिर रहा न जाए।
बात बिना उसके सब  बिगड़ी।
ए सखि साजन? ना सखि सिगड़ी।
भोर अँधेरे यह जग जाए।
सारे घर को फिर महकाए।
कौन भला उसको है भूला।
है सखि साजन? ना सखि चूल्हा।
मंद-मंद जब वो मुस्काता।
सब सखियों के मन को भाता।
उसकी सूरत पर बलिहारी।
का सखि साजन? नहीं मुरारी।
मेरे मन को बहुत सुहाए।
पल भर दूरी सही न जाए।
साज छेड़ता है वो अँगना।
का सखि साजन? ना सखि कँगना।
गोल-मोल सी इसकी काया।
देख सभी का मन ललचाया।
सही न जाए इससे दूरी।
का सखि साजन? ना सखि पूरी।
१०
जाए जब यह अच्छा लगता।
वापस आए तो दिल दुखता।
नहीं सुहाए इसका आना।
ए सखि बैरी? ना सखि ताना।
११
सुंदरता मन को अति भाए।
भांति-भांति के रंग दिखाए।
गोल-गोल करता वो घूमर।
ए सखि साजन? ना सखि झूमर!
१२
काटे छांटें फिर सिल जाए।
तरह-तरह के भेष बनाए।
पूरा करता वो सब मर्जी।
ए सखि साजन? ना सखि दर्जी!
१३
जब भी इसको होंठ लगाऊँ।
मुखड़ा देखूँ तो शरमाऊँ।
उसकी जगह न होती खाली।
ए सखि साजन? ना सखि लाली!
(लाली-लिपिस्टिक)
१४
मेरे हाथों लिपटा जाए।
हर विपदा से मुझे बचाए।
मन्नत की भरता वो झोली।
ए सखि साजन? ना सखि मोली!
१५
रूठे तो भी राग सुनाए।
खुश होकर भी शोर मचाए।
लगता जैसे वो है मूड़ी।
ए सखि साजन? ना सखि चूड़ी।
१६
छेड़े मुझको छूकर जाए।
उड़ती चूनर लट लहराए।
उसके साथ करें सब गरवा।
ए सखि सजनी? ना सखि पुरवा।
१७
बीच राह में जब मिल जाए।
देख उसे मन तब घबराए।
कौन भला उससे है जीता।
का सखि साजन? ना सखि चीता।
१८
झुमका चूड़ी बिछिया पायल।
बिन इसके कब करते घायल।
देख उसे मन हुआ अधीरा।
का सखि साजन? ना सखि हीरा!
१९
सावन में पुरवा लहराई।
सौंधी सी खुशबू ले लाई।
याद करे मन बनता पाखी।
का सखि साजन? ना सखि राखी!
२०
रोज सवेरे उठकर आता।
साँझ ढले अपने घर जाता।
रहता है वो कैसा तनकर।
का सखि साजन? ना सखि दिनकर!
२१
नीलगगन में फिरता रहता।
रात अँधेरी फिर भी बहता।
लगता है मुझको वो पागल।
ए सखि चंदा ? ना सखि बादल!
२२
रंगत उसकी श्यामल प्यारी।
भली लगे अम्बर की क्यारी। 
देख उसे सबका मन हर्षा।
ए सखि साजन ? ना सखि वर्षा!
२३
फूली फूली लगती न्यारी।
सबके मन को भाए प्यारी।
जी करता मैं करलूँ चोरी।
ए सखि साजन? नहीं कचोरी।
२४
परतें खुलते मैं रो जाऊँ।
फिर भी उससे मोह लगाऊँ।
समझ न आए इसका राज।
ए सखि साजन? नहीं सखि प्याज।
२५
चलती जब भी तो यह झूमे।
बार-बार गालों को चूमे।
रोज लगाए ऐसा ठुमका।
ए सखि साजन? ना सखि झुमका!
२६
महल त्याग बन फिरती जोगी।
विरहा की हर पीड़ा भोगी।
लेकर भटके वन वो हीरा।
ए सखि सजनी?ना सखि मीरा!
२७
घुल-मिल अपनी छाप दिखाए।
सबके जीवन को महकाए।
खुशियों लेकर बहे वो नदी।
ए सखि सजनी? ना मेंहदी!
२८
डाल कूकती कोयल आई।
आहट सुन महकी अमराई।
त्योहारों में वो है खास।
ए सखि साजन? नहीं मधुमास!
२९
हर विपदा से वो लड़ जाए।
दुख पीकर हरदम मुस्काए।
उसकी बातें भूल-भुलैया।
ए सखि साजन?ना सखि मैया!
३०
पद पंकज देख मंडराए।
गुनगुन करके गीत सुनाए।
साँझ देखकर जाता घबरा।
ए सखि साजन? ना सखि भँवरा!
३१
कोमल हाथों से जब मढ़ता।
सुंदर सलोना रूप गढ़ता।
सूरत से वो लगता ढाँचा।
का सखी साजन ? ना सखि साँचा!
३२
जीवन में फीकापन देकर।
जाए रस वो सारे लेकर।
उसके बिन सब लागे सीठा।
का सखि साजन ? ना सखि मीठा!
३३
सूने घर में जब इतराए।
रंग-बिरंगे रंग सजाए।
लागे वो खुशियों की सूची।
ए सखि साजन? ना सखि कूची!
३४
छूकर जब भी तन को जाए।
मन से फिर वो छाप न पाए।
लिए फिरे वो नियत तिरछी।
ए सखि साजन ? ना सखि बरछी!
३५
चढ़े जवानी को इतराए।
सब पर अपनी धौंस जमाए।
अकड़े वो जैसे हो लाठी।
का सखि साजन? ना सखि काठी!

काठी-शरीर
३६
सबकी रक्षा में वो रहता।
गर्मी सर्दी बारिश सहता।
जान लुटाए वो मनमौजी।
का सखि साजन? ना सखि फौजी!
३७
झूठ भरी जब परतें चढ़ती।
खींचतान में फिर वो बढ़ती।
चुभती उससे मन में रातें।
ए सखि साजन? ना सखि बातें।
३८
विचलित होता मन जब सुनता।
टूट गए फिर सपने बुनता।
व्याकुल करती है ध्वनि उसकी।
ए सखि साजन? ना सखि सिसकी!
३९
सबके मन को बहुत चलाए।
जीवन पथ से वो भटकाए।
पार न कोई उससे पाया।
ए सखि साजन ? ना सखि माया!
४०
घूमे नाचे फिर लहराए।
धीमे-धीमे गीत सुनाए।
उस-सा है क्या कोई सानी।
ए सखि साजन?नहीं मथानी!

मथानी-दही से मक्खन निकालने वाली रई।
४१
गोल-मोल सा रूप बनाए।
देख सभी का मन हर्षाए।
महके जब वो सौंधी मिट्टी।
ए सखि साजन? ना सखि लिट्टी!

लिट्टी-बाटी
४२
कोमल हाथों से जब मसले।
मचल मचल कर फिर वो फिसले।
फिर भी कभी न देता धोखा।
ए सखि साजन?ना सखि चोखा!

चोखा- भरता
४३
झूम झूमकर मुझे चिढ़ाए।
देख उसे मन फिसला जाए।
लागे वो मुझको बस बैरी।
ए सखि साजन ? ना सखि कैरी!
४४
देख उसे मन लालच आए।
आपस में झगड़े करवाए।
रिश्ते पर भारी है वो हर।
ए सखि साजन? ना सखि मोहर!
४५
देखूँ जब भी नींद उड़ाए।
छूने मन आतुर हो जाए।
नयनों में स्वप्न सा वो रखा।
ए सखि साजन? ना सखि नौ लखा!
४६
हाथ अकेला सभी घुमाएं।
साथ बँधे तो उठा न पाएं।
भारी होता वो बना गट्ठा।
ए सखि साजन? ना सखी लठ्ठा!
४७
छोटा-सा वो लगता प्यारा।
हाथों में कोमल-सा न्यारा।
देख उसे मन प्रेम है पला।
ए सखि साजन?ना सखि झबला!

झबला-बच्चे का वस्त्र
४८
उससे जीवन डोर कसी है।
नयनों में बस प्रीत बसी है।
वो ही गीता अरु रामायण।
ए सखि साजन?ना नारायण!
४९
रोए जब व्याकुलता छाए।
हँसता देखूँ मन खिल जाए।
प्यारा लागे उसका चलना।
ए सखि साजन?ना सखि ललना!
५०
जब आए तो प्रेम भगाए।
मन में कड़वा द्वेष जगाए।
सुख पर रखता वो अवरोध।
ए सखि साजन? ना सखि क्रोध?
५१
सुंदर सी छोटी है काया।
ऊपर वाले की है माया।
देख उसे मुख निकले मैया।
ए सखि साजन? नहीं बरैया!
५२
देख उसे जब मन भय खाए।
तन पर अपना चिह्न बनाए।
मन की हिम्मत भी वो तोड़ा।
ए सखि साजन? ना सखि कोड़ा!(हंटर)
५३
धूप ताप से रक्षा करता।
बारिश में झरने सा झरता।
आँधी देख वो जाए झरा।
ए सखि साजन?ना सखि छपरा!
५४
जब भी देखें शीश घुमाए।
गुस्से में फिर दौड़ा आए।
मुझको वो कुछ लगता टेढ़ा।
ए सखि साजन? ना सखि मेढ़ा!
५५
ऊँचे-नीचे रस्ते घूमे।
वेग बढ़े तो वन-वन झूमे।
खेल दिखाए वो बन नटिनी।
ए सखि नारी?ना सखि तटिनी!
५६
सबकी चाहत उसको पाना।
सुंदर सा फिर रोज सजाना।
सुख देता वो बन देवालय।
ए सखि साजन?ना सखि आलय!
५७
राजा सा जब चलकर आता।
भाल पसीना छलका जाता।
देख उसे न लाँघें देहरी।
ए सखि साजन? ना सखि केहरी!
५८
दिनभर सबसे छुपकर सोता।
साँझ ढले तो चुपके रोता।
भोर देख वो बनता भग्गू।
ए सखि साजन?ना सखि घुग्गू!
५९
लहरों पर उतराता आए।
माल ठिकाने पर पहुँचाए।
लिया समाधि जो उसे छेड़ा।
ए सखि साजन?ना सखि बेड़ा!

*बेड़ा-जहाज या बाँस का बना टट्टर*
६०
माटी पाए तो खिल जाए।
अपना फिर आकार बढ़ाए।
दिन दूना वो बढ़ता तीजा।
ए सखि साजन?ना सखि बीजा!
६१
जब भी मेरे घर में आए।
पाने की मन आस जगाए।
उसकी भाए सुंगध बड़ी।
ए सखि साजन?ना सखि सपड़ी!
६२
कड़ी धूप में उसको पाला।
खून पसीना उसमें डाला।
मिटता वो जब मचता हल्ला।
ए सखि साजन? ना सखि गल्ला!
६३
पढ़कर उसको आगे बढ़ते।
ऊँची-ऊँची सीढ़ी चढ़ते।
उसकी बात न लागे थोथी।
ए सखि साजन? ना सखि पोथी!
६४
जीवन की जब धुन में रहता।
सपनों की पुरवा-सा बहता।
समय मिटे वो बनता गठरी।
ए सखि साजन? ना सखि ठठरी!
६५
उसका वार न खाली जाए।
जो खाए रोता पछताए।
भारी उसका है भार सदा।
ए सखि साजन? ना सखि गदा!
६६
हाथों से जब कोमल मढ़ता
भिन्न-भिन्न रूपों में गढ़ता।
करता मन वो लालच पैदा।
ए सखि साजन? ना सखि मैदा!
६७
रंग सलोना मन को भाए।
सुख शांति घर में ले आए।
रहता चुप-चुप वो है गूंगा।
ए सखि साजन?ना सखि मूँगा!
६८
रात-रात भर जब वो जागे।
देख उसे अरि डरकर भागे।
धूप ताप सब उसने भोगा।
ए सखि साजन? नहीं दरोगा!
६९
हाथों से वो जकड़ा जाए।
आड़ा तेड़ा मोड़ घुमाए।
उसका लागे सुंदर ढाँचा।
ए सखि साजन? ना सखि खाँचा!

खाँचा-टोकरा,झाबा।
७०
बूढ़ा, बच्चा या हो छोरा।
गाँठ बँधी तो खुले न बोरा।
देखे छोर गड़ा के पुतली।
ए सखि साजन? ना सखि सुतली!
७१
बाँधे पीछे पक्के धागे।
अंदर बाहर करता भागे।
काम नहीं करता वो दूजा।
ए सखि साजन? ना सखि सूजा!
७२
सुनकर बातें जी घबराए।
बीते रैना नींद न आए।
उन्हें देख के काँपे गुर्दे।
ए सखि साजन?ना सखि मुर्दे!
७३
छुए प्रीत से अच्छा लागे।
वार करे तो फिर दुख जागे।
पकड़ छुरा वो करता गंजा।
ए सखि साजन? ना सखि पंजा।
७४
जबसे डाली उसने छाया।
लिया लपेटे अपनी माया।
देख उसे मन होता खुटका।
ए सखि साजन?ना सखि गुटखा!
७५
भाँति-भाँति के खेल सिखाए।
सपनों सा संसार दिखाए।
वो छोड़े कब किसे अकेला।
ए सखि साजन? ना सखि मेला!
७६
भूख लगे तो छत पर आए।
खिड़की झाँके शोर मचाए।
उसको जरा न भाए छैना।
ए सखि साजन? ना सखि मैना!
७७
मीठे-मीठे फल है खाता।
बातों को रहता दुहराता।
उसको भाए तीखा चुग्गा।
ए सखि साजन? ना सखि सुग्गा!
७८
सुंदर रूप सलोना प्यारा।
सबसे अच्छा सबसे न्यारा।
उसको भाए मिर्ची महुआ।
ए सखि साजन? नहीं सखि सुआ!
७९
रात खुले में रोज बिताए।
ठंडा शीतल नीर पिलाए।
उसके पीछे सब हों पागल।
ए सखि साजन?ना सखि छागल!
८०
फूँक मार जब आग जलाए।
सबके आँखों को अति भाए।
उसे पकड़ने मुड़ती कुहनी।
ए सखि साजन?ना सखि फुकनी!
८१
सुबह-सवेरे सामने आता।
मन के भीतर खुशी जगाता।
गुण मिठास फैलाए वो बस।
ए सखि साजन? ना सखि गोरस!

बसोरा पूजन में गुड़ और गाय की छाछ से बनने वाला मीठा पेय।
८२
धीरे से वो घर में आए।
सारे तन में टीस जगाए।
देख उसे मन में भय पसरा।
ए सखि साजन? ना सखि खसरा!
८३
उसका है हर रूप सुहाना।
बात सही यह सबने माना।
रहता नहीं कभी वो कोरा।
ए सखि साजन? ना सखि होरा!

होरा-हरे चने की बाली जिसे आग में भूनकर खाते हैं।
८४
आड़ी टेढ़ी उसकी काया।
रूप निराला मन को भाया।
पकडूँ तो लागे वो लकड़ी।
ए सखि साजन? ना सखि ककड़ी!
८५
रूप निराला सबको भाए।
मन मंदिर में प्रीत जगाए।
देख उसे मन बनता तितली।
ए सखि साजन? ना सखि टिकली!

टिकली-बिंदी
८६
देख उसे नयना हर्षाते।
उस पर अपनी प्रीत लुटाते।
बँधा प्रेम के वो फिर कुंदे।
ए सखि साजन?ना सखि बुंदे!

बुंदे-कान में पहनने वाले टोप्स।
८७
अपनी धुन में बहता जाए।
मधुर सुरीले गीत सुनाए।
उसकी राह न रोके खम्बा।
ए सखि साजन? ना सखि बम्बा!

बम्बा-छोटी नहर
८८
रातों को वो साथ सुलाए।
सर्दी गर्मी दूर भगाए।
देख उसे मुस्काए मैया।
ए सखि साजन? नहीं मड़ैया!
८९
झूम झूमकर मुझे चिढ़ाए।
सुंदरता मन को अति भाए।
अंतस में वो डेरा डाले।
ए सखि साजन?ना सखि झाले!

झाले-कान में पहनने वाला आभूषण।
९०
रात ढले जब उसको पाऊँ।
सारे दिन की थकन मिटाऊँ।
बिन उसके मुख निकले दय्या।
ए सखि साजन?ना सखि शय्या!
९१
नाप-तौल वो सबकी करता।
मँहगा सस्ता कभी न डरता।
करे काम वो सदा ही खुला।
ए सखि साजन?नहीं सखि तुला!
९२
हाथों में जब मेरे आए।
उठापटक कर शोर मचाए।
पीटे फिर वो पत्थर गुट।
ए सखि साजन? ना सखि दुरमुट!

दुरमुट-पत्थर कूटने वाला औजार।
९३
दुबला-पतला सा वो लंबा।
दिखता ऐसा जैसे खंबा।
काम करे वो सबसे अव्वल।
ए सखि साजन?ना सखि सब्बल!

सब्बल-मिट्टी खोदने का औजार।
९४
ऊपर से वो नरम मुलायम।
अंदर से मजबूती कायम।
गुण उसमें है जरा न मीठा।
ए सखि साजन?ना सखि रीठा!
९५
लगता उसका रूप सुहावन।
गुण उत्तम दिखता मनभावन।
देख उसे बीमारी भागी।
ए सखि साजन?ना सखि रागी!

रागी-राई जैसा धान्य जिसकी रोटी बनती है ‌।
९६
उसके बल बगिया है हँसती।
कलियों में सुंदरता बसती।
उसे देख झूमे हर डाली।
का सखि साजन...?ना सखि माली।

९७
भीगे जल रंगत छुप जाए।
चिकना सुंदर रूप बनाए।
ठंडक पर उसका है कब्जा।
ए सखि साजन?ना सखि सब्जा।

सब्जा-चिया सीड।
९८
देख उसे डरती बीमारी।
ऐसे उसके गुण शुभकारी।
पीड़ा सारी उसकी बंधक।
ए सखि साजन?ना सखि गंधक!
९९
जो भी इसके चक्कर आए।
उसको फिरकी नाच नचाए।
देख उसे बढ़ती बेचैनी।
ए सखि साजन ना सखि खैनी!

खैनी- तम्बाकू

१००
जब भी इसको घर में पाऊँ।
पाने को आतुर हो जाऊँ।
गुण का है वो चलता गट्ठा।
ए सखि साजन?ना सखि मठ्ठा!

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*