Tuesday, May 22, 2018

बचपन की मासूमियत

जीवन की भाग-दौड़ में
बचपन की मासूमियत
कहीं खोती जाती
हमारी पीढ़ी कार्यों में अपने
रहती है इतनी व्यस्त
पास नहीं है उनके
बच्चों के लिए थोड़ा सा वक़्त
पास नहीं हैं दादा-दादी
कौन सुनाए परियों की कहानी
रहते दिन भर वो अकेले
साथ नहीं कोई जिसके संग खेले
मोबाइल संग जोड़कर नाता
बचपन मासूमियत खोता जाता
***अनुराधा चौहान***

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन सखी!

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  2. आपकी पहली कृति की मासूमियत भी बहुत प्यारी है।
    अच्छा लगा पढ़कर।

    सस्नेह प्रणाम
    सादर।

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  3. मन के सहज से अनुभव ।
    सुंदर सखी।

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  4. सच में एकाकी परिवार और मोबाइल की दुनिया ने बच्चों का बचपन और मासूमियत सब छीन ली।
    बहुत ही सुन्दर
    वाह!!!

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  5. एकल परिवार और आज मोबाइल के दास बने लोग बच्चों की मासूमियत को डस रहे हैं ।सटीक सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  6. आज का सच है , पर फिर परिवर्तन तो संसार का नियम है .

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    1. हार्दिक आभार शिखा जी

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